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विजयशंकर शुक्ल
SAMBODHI
एक विस्तृत भूमिका भी जोड़ी गई जो विशेष महत्त्वपूर्ण है। कभी-कभी ऐसा भी हुआ कि अगला भाग पहले प्रकाशित हो गया एवं पीछे के भाग बाद में प्रकाशित हुए । यद्यपि ऐसे कुछ अन्य ग्रन्थ भण्डारों की सूचियों को भी देख सकते हैं। इस दृष्टि से भण्डारकर ओरियण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट की सूचियाँ विशेष उल्लेखनीय हैं । एशियाटिक सोसाइटी की सूचियों में भाग-१४ विशेष उल्लेखनीय है क्योंकि इस भाग में मात्र ८९ पाण्डुलिपियों का संग्रह है जो कामशास्त्र, वास्तुशास्त्र, संगीतशास्त्र, युद्धशास्त्र, सैनिक शास्त्र, चतुरङ्गशास्त्र, रत्नशास्त्र एवं चोर्यशास्त्र से सम्बन्धित संस्करण चिन्ताहरण चक्रवर्ती जी के सम्पादन के साथ पूर्ण हुआ । इस भाग में उपलब्ध कुछ पाण्डुलिपियाँ हैं : कामशास्त्र की रतिरहस्य एवं रतिकल्लोलिनी, वास्तुशास्त्र की मानसोल्लास, राजवल्लभमण्डन, . प्रासादमण्डन, रूपावतार, वास्तुशास्त्र एवं वास्तुमण्डन, संगीत की संगीतशिरोमणि, संगीतनारायण, शुभङ्कर का संगान सागर, क्षेमकरण की रागमाला, सोमदेव का रागविबोध, माप्पिस्यकृत रागरत्न, नृत्तरत्नावली, गानशास्त्र एवं संगीतकौतुक, रामचन्द्रकृत समरसार, रत्नपरीक्षार्णव एवं रत्नदीपिका तथा चौर्य्यशास्त्र से सम्बन्धित षण्मुखकल्प । १९५८ एवं १९६६ में भाग-१३ के प्रथम एवं द्वितीय फेसिकल का प्रकाशन हुआ जिसे अजितरञ्जन भट्टाचार्य ने सम्पादित किया था जिसमें २५२ पाण्डुलिपियों का विवरण है जो जैन वाङ्मय में उपलब्ध संस्कृत एवं प्राकृत भाषा की पाण्डुलिपियाँ हैं । १९६९ में एशियाटिक सोसाइटी के द्वारा भारतीय संग्रहालय (इण्डियन म्यूजियम) के संग्रह की ५१६ पाण्डुलिपियों की विवरणात्मक सूची का प्रकाशन हुआ जिसे नरेन्द्रचन्द्र वेदान्ततीर्थ ने संकलित किया था । पुन: १९७३ में इसके द्वितीय भाग का संकलन नरेन्द्रचन्द्र वेदान्ततीर्थ तथा श्री पुलिनबिहारी चक्रवर्ती ने किया। इस संग्रह में धर्मशास्त्र, स्मृति, व्याकरण, कोष एवं छन्द आदि से सम्बन्धित लगभग ८९४ पाण्डुलिपियां है। इस प्रकाशन में इन दोनों विद्वानों ने अमिताभ भट्टाचार्य के सहयोग से A Catalogue of Sanskrit Manuscripts in the Collection of Asiatic Society के भागएक जो वैदिक साहित्य की पाण्डुलिपियों पर है, उसके द्वितीय खण्ड का संकलन किया यह सूची आश्वालायन-श्रौतसूत्र तथा शांखायन श्रौतसूत्र पर आनन्दतीर्थ की टीका के विषय में सूचना देती है । इसीका तृतीय खण्ड १९७३ में प्रकाशित हुआ । ये दोनों सूची विवरणात्मक न होकर तालिका क्रम में हैं तथा २२१८ पाण्डुलिपियों की सूचना देती हैं । ऐसा प्रतीत होता है कि १९७३ के बाद एशियाटिक सोसाइटी का शैक्षणिक वातावरण पाण्डुलिपियों के सूचीकरण की दिशा में शिथिल रहा क्योंकि अगली सूची का प्रकाशन १९८७ में हुआ जो जैन वाङ्मय की पाण्डुलिपियों का शासकीय संग्रह था। इस तृतीय फेसिकल में ९१ महत्त्वपूर्ण पाण्डुलिपियों का विस्तृत विवरण दिया गया है जो तत्त्वार्थाधिगमसूत्र से प्रारम्भ होकर सुखबोधार्थमालापद्धति पर.समाप्त होता है। इस भाग का सम्पादन, भूमिका के साथ प्रोफेसर सत्यरञ्जन बनर्जी ने किया है। प्रो.
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