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Vol. XXXVI, 2013
स्वातन्त्र्योत्तर भारत में पाण्डुलिपियों का संग्रह एवं सूचीकरण
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का प्रथम भाग १९५३ में प्रकाशित हुआ जिसमें संस्कृत एवं कन्नड़ भाषा की पाण्डुलिपियों का विवरण दिया गया है । इसके अनन्तर भी यहाँ की पाण्डुलिपियों की विवरणात्मक सूची का प्रकाशन बारह भागों में १९५३ से १९८३ तक हुआ । इस संग्रह में लगभग
चार हजार से अधिक पाण्डुलिपिया हैं । १९५४ : १९५४ में ग्रेट ब्रिटेन एवं आयरलैण्ड के पुस्तकालयों में प्राच्य भाषा की पाण्डुलिपियों
की एक सूची का प्रकाशन रोयल एसियाटिक सोसाइटी, लंदन से किया गया । इस सूची में इंग्लैण्ड, स्कॉटलैण्ड, वेल्स एवं आयरलैण्ड के छोटे एवं बड़े संग्रहों के विषय में संक्षिप्त जानकारी दी गयी है। १९५४ में ही बिहार राष्ट्र भाषा परिषद्, पटना से प्राचीन-हस्तलिखित-पोथियों का विवरण प्रकाशित हुआ । इसके अन्य भाग, १९५५, १९५९, १९६० एवं १९६१ में प्रकाशित हुए । इस संग्रह में संस्कृत एवं प्राकृत भाषा की पाण्डुलिपियों के साथ-साथ हिन्दी भाषा की भी पाण्डुलिपियाँ हैं । इसी वर्ष आक्सफोर्ड युनिवर्सिटी प्रेस, लंदन से, इण्डिया आफिस लाइब्रेरी में उपलब्ध गुजराती एवं राजस्थानी भाषा की पाण्डुलिपियों की एक सूची प्रकाशित हुई जिसे स्व.
जेम्स फुलर ब्लामहार्ट ने तैयार किया था तथा अन्तिम रूप अल्फेड मास्टर ने दिया । १९५५-२००१ : यदि हम राजा राजेन्द्रलाल मित्र को पाण्डुलिपियों के सूचीकरण के क्षेत्र में पितामह के
रूप में स्वीकार करें तो कोई अत्युक्ति न होगी। १८७७ में A Descriptive Catalogue of the Sanskrit Manuscripts of the Asiatic Society of Bengal के प्रथम खण्ड के माध्यम से प्राच्य विद्या के क्षेत्र में एक नया अध्याय जुड़ा । १८७० से लेकर १८९५ तक भाग एक से नौ तक का सम्पादन राजेन्द्रलाल मित्र जी ने किया और भाग१० एवं ११ का सम्पादन महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री के कर कमलों से हुआ । भाग-७ जो तन्त्र की पाण्डुलिपियों पर है उसके संकलन का कार्य शास्त्री जी कर चुके थे लेकिन एक विस्तृत भूमिका के साथ इसका संशोधित संस्करण १९४० में प्रकाशित हुआ जिसे चिन्ताहरण चक्रवर्ती ने सम्पादित किया था । महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री जी का वैदुष्य कल्पनातीत है । ऐसा लगता है कि भारतीय विद्या के प्रायः प्रत्येक क्षेत्र में उनका प्रवेश था । १९४८ तक आते-आते श्री प्रबोधचन्द्र सेनगुप्त यहाँ की ७४११ पाण्डुलिपियों के सूचीकरण की संख्या पूर्ण कर चुके थे । इस १०वें भाग की पाण्डुलिपियों का संकलन भी हरप्रसाद शास्त्री ने ही किया था लेकिन इसका संशोधन एवं सम्पादन सेनगुप्त के हाथों से हुआ । यहाँ की सूचियों की एक विशेषता यह है कि सभी सूचियों के निर्माण के पहले ही विषय दृष्टि से विभाजन किया गया एवं प्रत्येक सूची के साथ उस विषय से सम्बन्धित
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