SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 186 विजयशंकर शुक्ल SAMBODHI बोपदेव, सारस्वत, प्रबोधचन्द्रिका, एवं प्राकृत व्याकरण से सम्बन्धित हैं । इसका प्रथम खण्ड १९३८ में प्रकाशित हुआ था। संस्थान की समस्याओं के कारण स्व. डॉ. श्रीपाद कृष्ण बेलवलकर जी के समय में इसका प्रकाशन नहीं हो सका। इसके अनन्तर प्रथम भाग के तृतीय खण्ड के संकलन का कार्य प्रो. पी. के. गोडे ने पूर्ण किया जो १९८७ में १०७७ पाण्डुलिपियों के विवरण के साथ प्रकाशित हुआ। इसमें भी उपनिषदों की पाण्डुलिपिया का विवरण है। तृतीय भाग के प्रथम एवं द्वितीय खण्ड का प्रकाशन १९९० में प्रकाशित हुआ जिसके संकलन का कार्य डॉ. पी. डी. नवाठे ने पूर्ण किया था । इन खण्डों में क्रमशः २३८ एवं ३२१ पाण्डुलिपियों की विवरणात्मक सूची है एवं इनके अन्तर्गत शिक्षा, प्रातिशाख्य, निघण्टु, निरुक्त, छन्द एवं ज्योतिष की पाण्डुलिपियों को संकलित किया गया है। तृतीय भाग के द्वितीय खण्ड में १२ वीं शताब्दी के प्रसिद्ध ग्रन्थ अद्भुतसागर का भी विवरण है । इस ग्रन्थ का संकलन बंगाल के राजा बल्लालसेन ने प्रारम्भ किया था तथा उनके पुत्र राजा लक्ष्मणसेन ने इसे पूर्ण किया । इस ग्रन्थ में कई ऐसे ग्रन्थों के सन्दर्भ हैं जिनके केवल नाम की सूचना है। समय के अन्तराल में ऐसी बहुत सी ज्ञान-सम्पदा विलुप्त हो गई। पुनः १९९१ में प्रो. नवाठे के द्वारा संकलित तृतीय भाग के तृतीय एवं चतुर्थ खण्ड का प्रकाशन हुआ जिसके अन्तर्गत क्रमश ३२५ एवं ४४१ पाण्डुलिरियों की विवरणात्मक सूची प्रस्तुत की गई। ये सभी पाण्डुलिपियाँ ज्योतिष से सम्बन्धित ग्रन्थों की सूचना देती हैं । १९९३ एवं १९९४ में प्रो. नवाठे ने कल्प सूत्र की पाण्डुलिपियों का संकलन चतुर्थ भाग के प्रथम एवं द्वितीय खण्ड के अन्तर्गत पूर्ण किया। इन दोनों खण्डों में ४०२ पाण्डुलिपियों का विवरण है। १९९६ एवं १९९७ में स्वर्गीय डॉ. हरदत्त शर्मा ने सप्तम् भाग के द्वितीय एवं तृतीय खण्ड का संकलन किया जिनमें धर्मशास्त्र से सम्बन्धित ११४६ पाण्डुलिपियों का विवरण दिया गया है। भण्डारकर ओरियण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पुणे में उपलब्ध सूचियों पर ध्यान देने से दो बातें स्पष्ट होती हैं । प्रथम यह है कि इन सूचियों का निर्माण उस विषय के निष्णात आचार्यों के द्वारा किया गया है और दूसरा यह कि सूची विभाजन का जो मानक निश्चित किया गया उसका पालन अन्तिम समय तक होता रहा । इसीलिये इन सूचियों के माध्यम से विद्वानों को पाण्डुलिपियों की विस्तृत सूचना उपलब्ध हुई। इसके परिणाम स्वरूप इस संस्था की सर्वाधिक पाण्डुलिपियों का प्रकाशन हो सका एवं विश्व के बौद्धिक मानचित्र पर यह संस्था उभरकर सामने आयी । : कर्नाटक राज्य में पाण्डुलिपियों के संग्रह में विविधता है। एक ओर जहाँ संस्कृत भाषा में निबद्ध हैं वहीं दूसरी ओर कन्नड़ भाषा के साथ-साथ प्राकृत भाषा में जैन पाण्डुलिपियों का भी इस राज्य में महत्त्वपूर्ण संग्रह है। ऐसा ही एक संग्रह कर्नाटक विश्वविद्यालय के अन्तर्गत कन्नड़ रिसर्च इन्स्टीट्यूट, धारवाड़ में है। इस संग्रह की विवरणात्मक सूची १९५३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520786
Book TitleSambodhi 2013 Vol 36
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages328
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy