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अल्पना जैन
SAMBODHI
७. प्रवचनसार-आचार्य कुन्दकुन्द, गाथा-२३ ८. वहीं, तत्त्वप्रदीपिका, गाथा २८ की टीका .९.. समयसार, गाथा ३२०. १०. चैतन्य बिहार, पृ. ४५ ११. जिनेन्द्र अर्चना - पृ. ५७, पं.टोडरमल स्मारक ट्रस्ट जयपुर, संस्करण वीसवां, १९९९. १२. नियमसार - आ. कुन्दकुन्द, गाथा-१५९. १३. समयसार कलश-कलश २००. १४. समयसार - गाथा ६, आ.अमृतचन्द्र कृत आत्मख्याति टीका. १५. चैतन्य बिहार, पृ. ४६ १६. निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध -जो पदार्थ स्वयं कार्यरूप परिणमित न हो परन्तु कार्य की उत्पत्ति में अनुकूल
होने से जिस पर कारणपने का आरोप आता है उसे निमित्तकारण कहते हैं । निमित्त की अपेक्षा से जो कार्य हो उसे नैमित्तिक कहा जाता है। निमित्त - नैमित्तिक सम्बन्ध में निमित्त - नैमित्तिक रूप कार्य का कर्ता नहीं होता है, क्योंकि व्याप्य-व्यापक भाव के अभाव में कर्ता-कर्म सम्बन्ध घटित नहीं होता है। (a) समयसार, गाथा ८२ की आत्मख्याति टीका.
(b) डॉ. उत्तमचंद्र जैन : आ.अमृतचन्द्र व्यक्तित्व व कृतित्व, पृ. ४४७. , . १७. उपागानगत योग्यता-जो स्वयं कार्यरूप परिणमित हो उसे उपादान कारण कहते हैं । कारण की कार्य
को उत्पादन करने की भक्ति का नाम योग्यता है।। १८. समयसार गाथा, १५ की आत्मख्याति टीका.
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