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________________ ज्ञान-ज्ञेय मीमांसा - जैनदर्शन का वैशिष्ट्य अल्पना जैन १. प्रस्तावना जैनदर्शन में मान्य ज्ञान-ज्ञेय मीमांसा विश्व में विद्यमान जड़ चेतनात्मक पदार्थों की स्वतंत्रता को अपने नूतन स्वरूप में प्रस्तुत करती है। सामान्यतः दार्शनिक चिंतन में यह माना जाता है कि कोई भी वस्तु पूर्ण अथवा चरम स्वतंत्रता तब ही प्राप्त करती है जब उसमें अस्तित्वात्मक, क्रियात्मक व ज्ञानात्मक स्वतंत्रता हो । अस्तित्वात्मक व क्रियात्मक स्वतंत्रता प्रायः समस्त जड़-चेतन वस्तुओं में स्वीकार कर ली जाती है, किन्तु जब ज्ञानात्मक स्वतंत्रता की बात उठती है तो वह केवल चेतन जगत् तक ही सीमित रह जाती है। दार्शनिक जगत् में ज्ञानात्मक स्वतंत्रता वैसी सत्ता पर लागू की जा सकती है जो स्वयं प्रकाश अथवा स्वसंवेद्य हो । इस दृष्टि से संसार की वस्तुओं को तीन भागों में बांटा जा सकता है। पहले वर्ग में जड़ पदार्थ जो अपने ज्ञान के लिए ज्ञाता पर निर्भर करते हैं। दूसरे वर्ग में चेतन पदार्थ को रखा जा सकता है जो दूसरे को जानने के साथ-साथ स्वयं के ज्ञान से भी युक्त होते हैं । एक तीसरा वर्ग स्वयं प्रकाश तत्त्व का हो सकता है उदाहरणार्थ - अद्वैत वेदान्त का आत्मा और बौद्ध दर्शन में विज्ञान ऐसा ही तत्व है । अब यदि जैनदर्शन की दृश्टि से ज्ञानात्मक स्वतंत्रता पर विचार किया जाये तो चेतन द्रव्यों को तो ज्ञानात्मक स्वतंत्रता प्रदान की जा सकती है, क्योंकि उन्हें स्व-पर प्रकाशक माना गया है, परन्तु जड़ वस्तुओं में ऐसी स्वतंत्रता संभव होती नहीं दिखाई देती है, परन्तु जैनदर्शन की यहाँ एक अपूर्व विशिष्टता दृष्टि गोचर होती है वह यह है कि वह वस्तुमात्र में 'प्रमेयत्व' नामक सामान्य गुण की सत्ता को स्वीकार करता है । प्रमेयत्व गुण के कारण ही अचेतन वस्तुओं में भी ज्ञानात्मक स्वतंत्रता निहित हो जाती है । वह इस प्रकार है कि अचेतन वस्तुयें यद्यपि स्वयं प्रकाशमान नहीं होती लेकिन वे किसी चेतन तत्व के कारण भी प्रकाशित नहीं होती हैं । यदि उनमें अन्तर्निहित प्रमेयत्व या ज्ञेयत्व गुण को स्वीकार न किया जाये तो चेतन तत्व की विद्यमानता में भी वे प्रकाशित नहीं हो सकती हैं अतः वस्तुमात्र में ज्ञेय बनने की जो सामर्थ्य है वही उनकी ज्ञानात्मक स्वतंत्रता है अतः विश्व की समस्त जड़-चेतनात्मक वस्तुयें अपनी स्वसामर्थ्य से प्रकाशमान होती है या प्रकाशित करती हैं उनकी सत्ता अन्य किसी के ज्ञान पर निर्भर नहीं है । यहाँ पर हम उक्त विषय के सम्बन्ध में विस्तार पूर्वक विचार करेंगें : विश्व में विद्यमान छ: द्रव्यों में से एक जीव द्रव्य को छोड़कर शेष पांच द्रव्य अचेतन अर्थात् Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520786
Book TitleSambodhi 2013 Vol 36
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages328
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size7 MB
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