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168 वसन्तकुमार म. भट्ट
SAMBODHI का स्वरूप ही "मान्य स्वरूप" के रूप में स्वीकारना चाहिये । क्योंकि महाकवि कालिदास के सम्मुख भरत मुनि का नाट्यशास्त्र ही आदर्शभूत मार्गदर्शक ग्रन्थ था उसमें तो कोई विवाद हो ही नहीं सकता। पाद-टिप्पणी १. National Seminar on the Prakrit Manuscripts, L. D. Institute of Indology,
Ahmedabad, 16-19 February, 2012
तस्मात् सृजापरं वेदं पञ्चमं सार्ववर्णिकम् । (नाट्यशास्त्रम्, १-१२) । ३. लोकवृत्तानुकरणं नाट्यमेतन्मया कृतम् । उत्तमाधम-मध्यानां नराणां कर्मसंश्रयम् ॥ (नाट्यशास्त्रम्, १-१०९) .
भरत मुनि-प्रणीतं नाट्यशास्त्रम् । सं. बलदेव उपाध्याय, चौखम्बा ओरिएन्टालिया, वाराणसी, १९८० Descriptive Catalogue of Sanskrit Manuscripts, Vol. 14(31), Published by BORI, Pune, नन्वार्यमित्रैः प्रथममेवाज्ञप्तमभिज्ञानशाकुन्तलं नामापूर्वं नाटकं प्रयोगेधिक्रियताम् इति । णं नन्वर्थे इति सौरसेन्याम् । अत्र क्वचित् पढुम इति पाठः सांप्रदायिकः । यतः प्रथमशब्दस्य, पढम, पढुम, पुढम इति क्षय आदेशाः । अहिण्णाणा-साउंदलं इत्यत्र साउंतलं इति पाठे पूर्ववद् दत्वाभावः । .......ख-घ-थ-भाम्
इति हः । म्र-ज्ञो-र्णः इति ज्ञस्य णः । नो णः इति णत्वम् ॥ (राघवभट्टः, पृ. १३). . ७. परन्तु मृच्छकटिक और प्राकृतबहुल प्रकरण-रूपक ही एक भी प्राकृतविवृति देखने में नहीं आती है। ८. अर्थात् संस्कृत पाण्डुलिपियों की विवरणात्मक सूचियाँ । ___ ये सभी प्राकृतविवृतियाँ देवनागरी में लिखी है। किन्तु ऐसी प्रवृत्ति दक्षिणभारत की ग्रन्थादि लिपि में
लिखी गई पाण्डुलिपियाँ में है या नहीं ? यह ज्ञातव्य है। . १०. यद्यपि यह असंदिग्ध रूप से ज्ञात नहीं है कि रामेशपुत्र विद्वन् मुकुट-माणिक्य-भट्ट और रामेश्वरपुत्र भट्ट
नारायण एक ही व्यक्ति है या भिन्न है। क्योंकि पहले ने प्राकृतछाया नाम दिया है, तो दूसरे ने प्राकृतविवृति नाम दिया है।
जिसका पुराना एक क्रमांक ७९/१९०७-१५ है । १२. प्रसंगतः यहाँ पर बंगाली वाचना के पाठ में कौन से शब्द है वह भी द्रष्टव्य है:- बहुमतेन्, परितोषम्
और हृदयस्थितः जनः । १३. प्राकृत भाषाओं का तुलनात्मक व्याकरण । के. आर. चन्द्र, प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, अहमदावाद, २००१
सिद्धहेमशब्दानुशासन का आँठवा अध्याय (८-४-२६० से ३०२ सूत्र), प्राकृत-व्याकरणम्, संपादकवज्रसेनविजयजी ॥
१.
१४.
Among the Prakrit dialects that are used in the prose of the dramas, Sabraseni occupies the first place..........According to Bharatiya-naty-sastra 17,46 the dialect of the dramas should be based on the S'aurasena dialect and according to 17-51, - Comparative Grammar of the Prakrit.Languages, by R. Pischel, Pub. Motilal Banarsidass, Delhi, 1965, pp.22.
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