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Vol. XXXVI, 2013 शाकुन्तल की प्राकृतविवृति एवं प्राकृतच्छायायें
163 १ अभिनव-दर्भाकुर-परिक्षितं मे चरणं, कुरंटक-शाखा-परिलग्रं च वल्कलम्, तावत् परिपालय धर्मम्
यावन्मोचयामि । - शकुन्तला की यह वाचिक-उक्ति केवल इसी में प्राप्त हो रही है। २ अनियतवेलं शूल्यमांसभूयिष्ट आहारश्चाभ्यवहयिते । ३ कादम्बरीसखीं अस्माकं प्रथमसौहृदम् इच्छते । ४ सर्वं कथयित्वा अवसाने पुनः परिहासविजल्प एष, न भूतार्थ इत्याख्यातं, मयापि मृत्पिण्डबुद्धिना तथैव
गृहीतम् । (२) शाकुन्तल-टिप्पण के नाम से जो प्राप्त हो रही है, पूणे एवं उज्जैन से दो प्रतियाँ प्राप्त की गई है।
एक तीसरी प्रति अड्यार की लाईब्रेरी में भी है। इसका आरम्भ अन्य तीनों से भिन्न है, जिसमें नाट्यशास्त्रीय चर्चाओं एवं प्राकृतभाषा के ध्वनिपरिवर्तनों की जानकारिया देने के बाद, शाकुन्तल नाटक में आये हुए प्राकृत संवादों का संस्कृत-छायानुवाद दिया गया है । शाकुन्तल-टिप्पण (पूणे एवं उज्जैन से प्राप्त) १ प्रथमांक के अन्त में उपर्युक्त शकुन्तला की वाचिक-उक्ति नहीं है । २ अनियतवेलं शुष्कमांसभूयिष्ट आहारश्च अद्यते ।
कादम्बरीसख्यं प्रथमशोभितं अस्माकं इष्यते । ४ सर्वं कथयित्वा अवसाने पुनः परिहासविजल्प एष, न भूतार्थ इत्याख्यातं, मयापि मृत्पिण्डबुद्धिना
तथैव गृहीतम् । (३) प्राकृत-विवृति में आया हुआ संस्कृतछायानुवाद, जो रामेशपुत्रनारायण भट्ट ने किया है वह वडोदरा
की प्रति में पूर्ण रूप से मिलता है । भा. ओ. रि. इनस्टीट्यूट की प्रति में केवल तीन अंक तक ही पाठ मिलता है। इनमें मिलनेवाला पाठ उज्जैन की शाकुन्तल-टिप्पण के साथ बहुशः साम्य रखता
प्राकृतविवृति (पूणे एवं वडोदरा) १ प्रथमांक के अन्त में उपर्युक्त शकुन्तला की वाचिक-उक्ति नहीं है। २ अनियतवेलं शूल्यमांसभूयिष्टः आहारश्च अद्यते । ३ कादम्बरीसखित्वं अस्माकं प्रथमशोभितं इष्यते । ४ सर्वं कथयित्वा अवसाने पुनः परिहासविकल्प एष, न भूतार्थ इत्याख्यातं, मयापि मन्दबुद्धिना
तथैव गृहीतम् ॥ (४) प्राकृतछाया की एक प्रति पूणे से प्राप्त हुई है, लेकिन वह अज्ञातकर्तृक है । जिसको ___भा.ओ.रि.इन्स्टीट्युट के संग्रह में शाकुन्तल टिप्पण ऐसा ही नाम दिया गया है, किन्तु वह प्राकृतछाया
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