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________________ 160 वसन्तकुमार म. भट्ट SAMBODHI इसी पाण्डुलिपि की अन्य सात प्रतियाँ का विवरण भी केटलोग में से उपलब्ध हो रहा है: - अड्यार लाईब्रेरी, मद्रास (चेन्नै) में पाण्डुलिपि क्रमांक-१२९७ है । (Descriptive Catalogue of Sanskrit Manuscripts in the Adyar Library) यह प्रति पूर्ण रूप में मिलती है। जिसकी पुष्पिंका में लिखा है कि - इति रामेश्वरसुत-नारायणभट्टविरचितायां शाकुन्तलकृतविवृतौ सप्तमोऽङ्कः । २. तुक्कोजी सरफोजी सरस्वती महल, थांजुवरम् में एक पाण्डुलिपि है । ३. श्री एच. डी. वेलनकर द्वारा संपादित केटलोग में बताया गया है कि युनिवर्सिटी ऑफ बोम्बे, मुंबई के संग्रह में पाण्डुलिपि क्रमांक-६६० से इसी "शाकुन्तलप्राकृतविवृति" का संग्रह हुआ है। 8. A Census of Indic Manuscripts in the United States & Canada, Ed., H. I. Poleman, Pub. American Oriemtal Society, New Haven, 1938 में भी शाकुन्तलप्राकृतविवृति का उल्लेख है, जिसका क्रमांक - २२४६/एच.१०८९ है । यह प्राकृतविवृति भी रामेश्वर भट्ट के पुत्र नारायण भट्ट ने बनाई थी ऐसा निर्देश है । ५. महाराजा सयाजीराव युनिवर्सिटी ऑफ बडौदा के संग्रह में (क्रमांक - १२५९४) जो पाण्डुलिपि है, उसकी स्केन कॉपी मिली है, जो पूर्ण है । ६. महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोधकेन्द्र. महरानगढ, जोधपुर में (दो प्रतियाँ) है, एवं ७. सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी में भी इसकी प्रति उपलब्ध है ऐसा निर्देश है। (ख) सिन्धिया प्राच्यविद्या शोध प्रतिष्ठान, उज्जैन की ११८९ क्रमांक की "शाकुन्तलनाटकटिप्पणी" शीर्षकवाली पाण्डुलिपि में वस्तुतः प्राकृत संवादों का संस्कृतछायानुवाद ही है। उनकी पुष्पिका में लिखा है कि - संवत् १७५२ वर्षे ज्येष्ठमासे शुक्लपक्षे कान्वितायाः दशम्यां नडपत्तननिवासिना बाल्हजिद् भट्टेनोरः पत्तने लिखितमिदं नाटकटिप्पणं । इस पाण्डुलिपि के लेखक का नाम बाल्हजिद् भट्ट है । किन्तु उसके मूल रचयिता का नाम अज्ञात है । इसी की अन्य दो प्रतियाँ भी उपलब्ध हो रही है। जैसे कि - १. भाण्डारकर ओरिएन्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पूना, एवं २. डिस्क्रिप्टीव केटलोग ओफ संस्कृत मेन्यु. इन अड्यार लाईब्रेरी, अड्यार (चेन्नै), वो. ५, १९५१ में १२९६ क्रमांक से उसका उल्लेख है। इसकी महत्ता इस बात में है कि (अज्ञात) रचयिता ने आरम्भ में भरतमनि के द्वारा दिये गये प्राकतभाषा के ध्वनिपरिवर्तनों (नाट्यशास्त्र, अध्याय-१८) को उद्धृत किया है, और उसका विवरण देने के बाद शाकुन्तल के प्राकृत संवादों का संस्कृतानुवाद दिया है। इन तीनों पाण्डुलिपियों में से प्रथम दो का हमने साक्षात् परिचय किया है। (ग) भाण्डारकर ओरिएन्टल रिसर्च इन्स्टीट्युट, पूणे के संग्रह में जो ४७१/१८८७-९१ क्रमांक की "शाकुन्तलनाटक-प्राकृतछाया" शीर्षकवाली पाण्डुलिपि है, वह षष्ठांक पर्यन्त ही है और उसमें कहीं पर रचयिता का नाम नहीं मिलता है । इस प्रति के आरम्भ में लिखा है कि -. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520786
Book TitleSambodhi 2013 Vol 36
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages328
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size7 MB
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