SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Vol. XXXVI, 2013 पुराणों में देवी सरस्वती 135 जा सकता है और इस रूप में वाक् और सरस्वती अभिन्न रूप में विवेचित है पुराणों में सरस्वती को वाक् रूप कहकर उसकी महत्ता को सार्वभौम और सार्वकालिक रूप में स्थापित किया है। कोई भी साहित्य कभी भी वाक् और सरस्वती को पृथक रूप से स्थापित नहीं कर सकते बल्कि वे सरस्वती और वाक् एक रूप मानते हैं और यही वाक् रूप सरस्वती की सबसे बड़ी विशेषता है । पुराणों में सरस्वती का दार्शनिक रूप सरस्वती के विविध रूपों में उसका दार्शनिक रूप भी अति महत्त्वपूर्ण है। इस रूप का विवेचन विभिन्न पुराणों में विवेचित है। सरस्वती को प्रकृति रूप माना गया है। इसमें सरस्वती की उत्पत्ति विश्वा रूपा नाम से हुई है । सरस्वती को ब्रह्मा की मानसी सृष्टि माना गया है । इसी रूप में यह प्रकृति रूप है । सरस्वती को ब्रह्मा की शक्ति होने से ब्रह्माणी के रूप में भी माना गया है। यह सरस्वती ब्रह्माणी रूप में ब्रह्मा की प्रेरक शक्ति कही गई है। महालक्ष्मी से उत्पन्न सर्वशक्ति मति देवी के रूप में सरस्वती को प्रस्तुत किया गया है। सरस्वती को महाविद्या, महावाणी, भारती, वाक् आदि नामों से भी उल्लिखित किया गया है। यहा मानस उत्पत्ति का तात्पर्य वाक् से लिया गया है जो एक अनिर्वचनीय तथ्य है । ब्रह्मवाणी अर्थात् ब्रह्मा के सदृश ही चतुरर्मुखी, चतुर्वक्त्रा भी कहा गया है। सरस्वती के महाविद्या और सरस्वती दो भेद किये गये है जिनमें महाविद्या को एकवक्त्रा माना गया है। • सरस्वती परमात्मा की शक्ति है। जिनके आधार पर अपने संसार का निर्माण किया । कार्य की यह शक्ति उसे परमात्मा से घनिष्ट रूप में सम्बद्ध करती है। . जिस प्रकार वेदान्त की माया, सांख्य की प्रकृति का कार्य है उसी प्रकार ब्रह्मा के साथ सरस्वती का स्पष्ट संकेत है। ब्रह्मा के द्वारा की गई सृष्टि में सरस्वती महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है । इस प्रकार दार्शनिक स्वरूप ब्रह्मतत्त्व के गुणो से ओत-प्रोत समस्त विषयो का नियता सम्पूर्ण प्राणियो को जन्म एवं स्थिति देनेवाला आवश्यकता पड़ने पर संहार कर देनेवाला माना गया है। यही सरस्वती का दार्शनिक स्वरूप है जो के आवश्यकता पड़ने पर सम्पूर्ण विश्व को अपने अंदर समेट लेता है। पुराणों में सरस्वती का भौतिक रूप में संस्कृत साहित्य ज्ञान का विपुल भंडार है इसमें सम्पूर्ण देवी-देवताओं का पद रूप, चरित वर्णित है। ऋग्वेदकालीन मे सरस्वती का रूप नदी रूप में भी प्राप्त होता या ब्राह्मण कालीन उसके चरित्र की प्रमुख विशेषता वाणी से तादात्म्य है वाग्वै सरस्वती । किन्तु पौराणिक काल में परिवर्तित होकर वह एक नये रूप में उभर कर आयी यही कारण है कि पुराणकारों में सरस्वती के भौतिक रूप के बारे में मत वैभिन्य है। सरस्वती देवी का वर्णन कहीं-कहीं तो चार मुखोंवाली, चार हाथोंवाली हंसाधिरुढा, अक्षमाला Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520786
Book TitleSambodhi 2013 Vol 36
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages328
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy