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134 वर्षाबहन एच. पटेल
SAMBODHI एक पार्थिव नदी थी, परन्तु अपने जलों की पवित्रता के कारण उसे देवी चरित्र मिला तत्पश्चात् वह वाक् की देवी भी बन गई।
सरस्वती नदी के पवित्र जलों ने लोगों में पवित्र जीवन प्रदान किया। इस पवित्र जीवन के कारण उनमें पवित्र वाक् का जन्म ऋचाओं के रूप में उदबुद्ध हुआ । इन पवित्र ऋचाओं के कारण सरस्वती नदी का तादात्म्य वाक् तथा वाग्देवी से हो गया। सरस्वती नदी का सम्बन्ध वाक् से पहले यह सरस्वती नदी ही थी जो कुरु-पाञ्चाल क्षेत्र से होकर बहती है। सरस्वती अथवा वाक् का सम्बन्ध सोम से भी पाया जाता है।
Soma frightened Vrtra Fled to the Anushumati, flowing in the Kuruksetra region, He settled there along with him. They used Soma and thereby evolved Soma-Sacrifices.
सरस्वती देवी को वाग्देवी अर्थात् वाणी के रूप में स्वीकार करते हुए कूर्म-पुराण में कहा है कि सरस्वती देवी सर्व विद्याओं में जगत् में सर्वश्रेष्ठ है। कल्याणकारिणी हो, वाणी की देवी वर को देनेवाली, अवर्णनीय सस्वार्थ को सिद्ध करनेवाली आप की कीर्ति जगत में सर्वव्यापी है।
सरस्वती देवी सम्पूर्ण विद्याओं को देनेवाली कीर्तिदायिनी तथा यश का स्त्रोत मानी जाती है । वाग्देवता अथवा सरस्वती आध्यात्मिक पक्ष में निष्क्रिय ब्रह्म का ही सक्रिय रूप है । इसलिए यह ब्रह्माविष्णुशिवादि को गति प्रदान करनेवाली शक्ति है। इसीलिए इसे ब्राह्मी कहा जाता है। सरस्वती देवी वाणी रूप है आधिभौतिक वाक् को देवों ने उत्पन्न किया देवीवाचमजन्यन्त देवाः । इस वाक् के चार पाद विभाग है चत्वारि वाक् परिमिता पदानि ।
ये चार रूप हैं परा पश्यन्ती मध्यमा बैखरी ।
वाक् के अन्य नाम इला, सरस्वती, भारती, जो भूः भुव स्व: की प्रतिनिधिकारिणी देवियां है। इन देवियों को एक दूसरे नाम से भी जाना जाता है जिन्हें पश्यन्ती मध्यमा बैखरी कहा गया है।
तीनों देवियो में से भारती पश्यन्ती है, सरस्वती मध्यमा है, इला बैखरी कहा है। वही नादात्मिका वाक् परा पश्यन्ती मध्यमा और खरी के रूपों में प्रसिद्ध है । अपने मूल स्त्रोत में वाक् परा है जब वह हृदयगत है तब वह पश्यन्ती है। यह अवस्था केवल योगियों द्वारा ही जाना जा सकती है तब वह हृदय के मध्य में उत्पन्न होकर स्पष्ट तथा ज्ञातव्य हो जाती है तब मध्यमा हो जाती है।
मत्स्यपुराण के अनुसार सरस्वती की उत्पति ब्रह्मा के मुख से मानी गई है परन्तु एक पग और आगे बढकर यह कहना कि सरस्वती की उत्पति ब्रह्मा के मुख से हुई है यह सरस्वती रूपी वागोत्पति का ही प्रतिपादन करता है क्योंकि वाक् की उत्पति ब्रह्मा के मुख से हुई है ।
इस प्रकार सरस्वती का वाणी रूप विवेचन ब्रह्म का बोधक है । वाक् ब्रह्म भी कहा गया है। और यह वाक् सूक्ष्म ब्रह्म ही है और ज्ञानीजन सरस्वती देवी के इस वाक् ब्रह्म को वाणी रूप में ही माना
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