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________________ Vol. XXXVI, 2013 पुराणों में देवी सरस्वती 133 स्कन्धपुराण में भी इसी प्रकार का वर्णन है स्कन्धपुराण के अनुसार सरस्वती पहले एक देवी थी पृथ्वी तल पर फैला हुआ समुद्र वडवाग्नि, आलुप्त था इस वडवाग्नि को पाताल-लोक में करने तथा इसके कुप्रभाव से देवों को बचाने के निमित्त भगवान विष्णु ने स्वयं सरस्वती से प्रार्थना की कि वह पृथ्वी पर पधारे । ब्रह्मा की सुयोग्या एवं आज्ञाकारिणी पुत्री होने से सरस्वती ने पिता की आज्ञा के बिना अन्यत्र जाना अस्वीकार कर दिया । इसके पश्चात् विष्णु ने स्वयं ब्रह्मा से प्रार्थना की कि वह सरस्वती को पृथ्वी पर जाने की अनुमति दे दें। श्रीमद्भागवत् पुराण में सरस्वती नदी के साथ ही अन्य नदियों का वर्णन किया गया है । ब्रह्माण्डपुराण में भी एक स्थान पर कावेरी, कृष्णवेषा, नर्मदा, गोदावरी, चन्द्रभागा, इरावती, विपाशा, कौशिकी शतुद्रु, सरयू, सीता, हलादिनी तथा पावनी नदियों का विवाह अग्नि के साथ बताया गया है। अग्नि को प्रकाश एवं पवित्रता का प्रतीक माना गया है। अर्थात् सरस्वती भी एक पवित्र नदी है। अग्नि पुराण ने नदी विशेष की पवित्रता स्थान विशेष पर बताई उसके अनुसार गंगा का पवित्रता कनखल में है । सरस्वती की कुरुक्षेत्र में, परन्तु नर्मदा की पवित्रता सर्वत्र है । नदी जल के सम्बन्ध में दस पराण में कहा गया है कि सरस्वती का जल मनष्य को तीन दिन में पवित्र बनाता है. यमना का सात दिन में, गंगा का तत्क्षण । परन्तु नर्मदा केवल दष्टिमात्र से ही सबको पवित्र कर देती है। सरस्वती अपनी पवित्रता से सब पापों का भंजन करनेवाली है अतएव उसे प्रणाशिनी कहा गया है। पवित्र जलयुक्त होने के कारण उसे शुभा पुण्या, अतिपुण्या आदि कहा गया है। . ब्रह्मपुराण में सरस्वती को गंगा, सिन्धु, यमुना, विपाशा, देविका, गोमती, दषदवती आदि नदियों के साथ एक प्रमुख नदी आर्यव्रत क्षेत्र की माना गया है और इस नदी का जल इस क्षेत्र के लोग अत्यधिक · · उपयोग में लाते रहे होंगे यह मान्यता है । मत्स्यपुराण के अनुसार सरस्वती का आदि स्त्रोत सर्प सरोवर कहा गया है । इस सरोवर से ज्योतिष्मति और सरस्वती दो नदियां पूर्व एवं पश्चिम समुद्रों में समाती है। भागवतपुराण में सरस्वती के किनारे अनेक तीर्थों के प्रसंग भी मिलते है । इस प्रकार नदी रूप में सरस्वती का स्थान अति महत्वपूर्ण एवं पापनाशिनी सतत जल प्रदान करनेवाली नदी के रूप में कहा गया है। पुरणों में सरस्वती वाणी के रूप में संस्कृत साहित्य में सरस्वती को देवी, नदी, विद्या की अधिष्ठात्री देवी आदि विविध रूपों से जाना जाता है। पौराणिक साहित्य में भी सरस्वती नदी अपनी विशिष्टता ली हई है। सरस्वती सर्वप्रथम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520786
Book TitleSambodhi 2013 Vol 36
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages328
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size7 MB
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