________________
136 वर्षाबहन एच. पटेल
SAMBODHI तथा कमण्डलुधारिणि होती है तो अन्यत्र कतिपय पुराणों में सरस्वती का भौतिक रूप का वर्णन करते हुए कहते है कि सरस्वती के एक हाथ में पुस्तक, दूसरे में वीणा, तीसरे में कमण्डलु तथा अक्षमाला चौंथे में है।
सरस्वती के कहीं एक मुख तथा कहीं चार मुखों की कल्पना की गई है। मत्स्यपुराण में एक स्थान पर कहा गया है कि वेदों एवं शास्त्रों की उत्पत्ति ब्रह्मा से हुई ।
इसलिए सरस्वती के मुख की कल्पना वेद से करना निश्चित रूप से उनकी उत्पत्ति तथा ब्रह्मा से उत्पन्न वेद-शास्त्र विषय सिद्धान्त का दृढीकरण है जिस प्रकार ब्रह्मा के चारों मुख चार वेदों का प्रतीक है इसलिए सरस्वती का मुख भी वेद के प्रतीक हुए ।
याकुन्देन्दुं तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृताः ।
या वीणांवर दण्डमण्डित करा: या श्वेत पद्मासना ॥ स्त्रोतरत्नाकर में भी कहा गया है कि सरस्वती के मुख की कल्पना चन्द्रमा के समान की गई है जिसने धवल हार सर्व शुभ वस्त्रों से अपने शरीर को आच्छादित कर रखा है जिसने अपने हाथों में वीणा धारण कर रखी है जो श्वेत पद्म कमल पर शोभायमान है ।
वामनपुराण में सरस्वती की आकृति, लिंगानुकृति मानी गई है।
स्कन्धपुराण में कहा गया है कि सरस्वती नदी के किनारे का मिट्टी का प्रयोग भारती की प्रतिमा के निर्माण में प्रयुक्त की गई ।
भागवतपुराण में सरस्वती के लिए स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वाक् की उत्पति ब्रह्मा के मुख से हुई।
___ इस प्रकार सरस्वती का भौतिक रूप उसकी स्वरूपाकृति शारीरिक सौन्दर्य वस्त्राभूषणों से सुसज्जित विविध प्रकार के आसनों में स्थित वह देवी मानी गयी है। इसका यह भौतिक रूप पौराणिक साहित्य में अनेकविध वर्णित है। जो कि मनीषियों के आकर्षण का विषय और कवियों की कवित्व शक्ति को बढ़ाने वाला माना गया है। सरस्वती के इस भौतिक रूप के आधार पर अनेक कवियों ने काव्य रचनाओं व शिल्पियों ने मूर्ति निर्माण का आधार माना । संदर्भ ग्रंथ
१. यास्क रचित् -निरुक्त २. अग्निपुराण ३. ब्रह्मवैवर्त पुराण
४. गरुडपुराण ५. स्कन्धपुराण
६. वामनपुराण ७. मत्स्यपुराण
८. ब्रह्मवैवतपुराण ९. श्रीमद्भागवत् पुराण
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org