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________________ 126 तनूजा सिंह SAMBODHI ६.१ से.मी., दुर्गा आकार १८ से.मी., आदि उल्लेखनीय है ।११ ये लगभग ग्यारह सौ वर्ष ईसा पूर्व की हैं ।२२ सूरतगढ़ के पास 'रंगमहल' के अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्राचीन स्थल से स्वीडन की पुरोवेत्ता श्रीमती डा. हिन्ना रिड को लगभग ५५ वर्ष पूर्व मिट्टी का बना एक कटोरा मिला था जो कि स्वीडन के 'लुण्ड संग्रहालय' में सुरक्षित है। यह एक अनोखा पात्र है जिसके किनारे पर लगी 'दो पुरुषाकृतियां' कुषाणकाल की प्रतीक है । जो कि संभवतया सूर्य के पुत्र अश्विनी कुमारों का अंकन दर्शाती है ।१३ इसके अतिरिक्त पटना से द्वितीय शताब्दी ई (चि. सं. ६) महिला के शीर्ष में अलंकृत माला इत्यादि सौन्दर्य को बढ़ा रही है। हाथ में सम्भवतया तोता या चिड़िया की सुन्दर आकृति है। पटना से प्राप्त एक अन्य गोलमुखाकृति कानों में अलंकृत कुण्डल, हाथों में वलय, सीधा हाथ नीचे की ओर मानों स्कर्ट या साड़ी पकड़े हो । (चि.सं. ७) एक अन्य मथुरा से प्राप्त रिलीफ मृण्मूर्ति का पैर पीछे की ओर जैसे नृत्य की भाव भंगिमामय, कानों, गले व शीर्ष का अलंकरण सौन्दर्यशाली हाथों में बड़े-बड़े कंगन इत्यादि प्रथम २:ताब्दी की उक्त रचना देखने योग्य है । (चि. से. ८) पाँचवी शताब्दी ई. की श्रावस्ती से प्राप्त दुर्गा माँ को सिंह पर विराजमान (चि. सं. ९) हाथ में त्रिशूल तीसरा नेत्र मानों खुलने वाला हो, गिरते हुए केश सज्जा बाजूबन्ध इत्यादि के अतिरिक्त वस्त्रों की सलवटें व अलंकरण अद्भुत है । किनारे किनारे खिले हुए फल को दिखाया है। इसके साथे ही पाँचवी शता. ई. की राजघाट से प्राप्त (चि. सं.१०) मृण्मूर्ति में चेहरे की मुस्कुराहट च धुंघराले बाल चित्ताकर्षक हैं । मिट्टी से बनी प्रतिमाओं व फलकों के मुख विलक्षण या भिन्न स्त्री मूर्तियों की मुखाकृति हैं ।१४ पटना शहर के गोलकपुर की खुदाई से प्राप्त मूर्ति शिल्प का शीर्ष व पैर नहीं है। मध्य भाग में आभूषण आदि में उक्त मूर्ति (वि. सं. ११) दीदारगंज की यक्षी के समान है। माला व लटकते फंदने आदि अलंकृत अलंकरण दर्शनीय हैं। वैशाली शुंगकाल में मृण्मूर्तिशिल्प का एक केन्द्र था । यहाँ से प्राप्त (चि. सं. १२) एक कमल वन में खड़ी कंधों में पंख लगे हुए । कानों में गोल कुण्डल, गले में चपटा कंठा, हाथों में कटकावली, चौड़ी करधनी और नूपुर इसके आभूषणों से सुसज्जित इसे प्रतिमा लक्षण अनुसार सपक्ष लक्ष्मी की मूर्ति माना है । कामदेव की कई मृण्मूतियाँ सपक्ष हैं । कौशाम्बी से प्राप्त कामदेव (चि. सं. १३) कला की दृष्टि से मृण्मूर्तियाँ उच्च कोटि के हैं। इसके साथ ही कोसम (इलाहाबाद, उ. प्र.) से प्राप्त सौन्दर्य की देवी श्री लक्ष्मी (चि. सं. १४) आक्सफोर्ड के भारतीय संग्रहालय में सुरक्षित मूर्ति की शिरोभूषण के बीच में कमल का फुल्ला ओर दोनों ओर निकलते हुए पार्श्व भागों में मांगलिक चिह्न अंकित हैं जो कि उसका दिव्य पद सूचित होता है । अलंकरण युक्त चित्ताकर्षक मृण्मूर्ति सौन्दर्य की प्रधानता देखते ही बनती है। यदि हम लगभग ६०-६५ वर्ष पूर्व दृष्टि डालें तो डा. एल. पी. टैसीटरी द्वारा पूर्व गुप्तकालीन मृणमूर्ति फलक गंगानगर (राजस्थान) से खोजे थे जिनको कि राजकीय संग्रहालय बीकानेर में रखा गया। उनमें से दो मूर्तिफलक कृष्ण संस्कृति के जुड़े विषयों के हैं और एक फलक में भगवान श्रीकृष्ण गोवर्धन धारण (चि. सं. १५) जो कृष्ण की लीलाओं में एक लीला है, के दर्शन होते हैं । उक्त फलक में गाँधार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520786
Book TitleSambodhi 2013 Vol 36
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages328
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size7 MB
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