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________________ Vol. XXXVI, 2013 भारतीय मृण्मूर्ति कला के आधार 125 केन्द्र के रूप में पहचाने गये (चित्र सं. १) । विकास स्वरूप उदाहरणों में विभिन्न समय के मृण्मूर्तिकला के केन्द्रों में बुलन्दी, बाघ, बक्सर, पाटलिपुत्र, टेर, नेवसा, कोल्हापुर, कोण्डापुर और धरनीकोटा, नागार्जुन कोण्डा, काँचीपुरम, झूसी, राजघाट, अहिच्छात्रा, कौशाम्बी, भीता, चन्दौसी, श्रावस्ती, घोसी, वाँसगांव, नालन्दा, नगरी और बीकानेर आदि विभिन्न प्रदेशों से महत्त्वपूर्ण सामग्रियाँ प्राप्त हुयी हैं। मौर्यकाल में मृणमूर्ति में कलात्मक अभिव्यक्ति का समय रहा है जिसमें मृण्मूर्ति शिल्पकार्य भी श्रेष्ठ रहे हैं ।' मृण्मूर्ति में लौकिक स्थापत्य का सम्बन्ध है, तो ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय आवास गृह कच्चे और पक्के दोनों प्रकार के होते थे। गाँव में ईंट गारे से बने हुये प्रायः कच्चे मकान होते थे । सोंख के अर्धवृत्ताकार भवन (चित्र सं. २) के ध्वंसावशेष कुषाणकालीन समानता के द्योतक हैं । भरतपुर (राजस्थान) क्षेत्र में मौर्यकालीन मृण्मूर्ति शिल्प नोह, अजान एवं अद्यापुर स्थानों से उत्खनन में प्राप्त हुये हैं जिनमें देवी, मिथुन, सतीसत्ता, बौना, दम्पति आदि कई मूर्तिशिल्प शुंग एवं कुषाणकाल तक के हैं । नोह ग्राम से मौर्यकाल से पूर्व के कुछ अवशेष प्राप्त हुये हैं। इनमें मिट्टी के बर्तन के ढक्कन पर बनी हुई चिड़िया (चित्र सं. ३) व बर्तनों के टुकड़े हैं जो ११ सौ वर्ष ई.पू. के हैं। क्योंकि ये सिलेटी रंग के हैं। आर. सी., अग्रवाल द्वारा मिली जानकारी के आधार पर यह मौर्यकाल से पहले की मृद्भाण्ड कला के महत्त्वपूर्ण साक्ष्य उपलब्ध हुये हैं जिनमें चित्रित (पेन्टेड ग्रे वेयर) मृद्भाण्डों का कार्य ईसा पूर्व आठ सौ, नौ सौ वर्ष पूर्व का निर्धारण संभव हुआ और C14 कार्बन विश्लेषण पद्धति के आधार पर यह भारत के पुरातत्त्व की महत्त्वपूर्ण कड़ी माना गया है । - शुंगकालीन मृणमूर्तियों में राजस्थान के नगरी, नगर, रैढ़ आदि स्थान उल्लेखनीय हैं । टोंक जिले के नगर (प्राचीन मालवनगर) की खुदाई से सफेद रंग की खड़िया मिट्टी के बने लघुफलक पर कामदेवरति का अंकन भव्य है और एक अन्य फलक इन्द्र-ऐन्द्री गजारुढ़ हैं । : वसुधारा (चि.सं. ४) चौदह सेन्टीमीटर चौड़ाई वाली प्रतिमा है। उक्त द्विभुजी देवी अपने दोनों हाथों से चरणों के आगे रखे घट में कुछ उड़ेल रही हैं । देवी का यह रत्नघट ऐश्वर्य का प्रतीक है। देवी के कानों में कुण्डल, बाजुओं में भुजबंध, कलाइयों में चूड़िया तथा गले में कंठहार सुसज्जित है ।१० वसुधारा के अतिरिक्त ५५ से.मी. का स्त्री का शीर्ष उल्लेखनीय है जिसकी आंखों की बनावट मछली के समान होने से इसे 'मीनाक्षी' कहा गया है। यह प्रतिमा प्रारम्भिक मौर्यकालीन मानी गयी है। एक अन्य ५ सेमी के आकार की सांचे में ढाली गयी स्त्री प्रतिमा का ऊपरी भाग है, जिसकी केश सज्जा कलात्मक है । ६. सेमी के आकार में ढाली गयी आयताकार आकार में स्थानक दम्पति की प्रतिमा (चित्र सं. ५) में पुरुष के बालों को मोतियों के समूह से बांधा गया होने का प्रतीत होता है । स्त्री के सिर के ऊपर बूंघट दर्शाया गया है, जो मूर्तिकला का एक अनेखा उदाहरण है। स्त्री-पुरुष को अलंकरणयुक्त दर्शाया गया है। इसी प्रकार की स्त्री-पुरुष आकृतियां हस्तिनापुर और अहिच्छात्रा में भी पायी गयी है । उक्त प्रतिमाओं के अतिरिक्त नोह से प्राप्त मूर्तियों में भी स्त्री की आकृति, आकार १२.३ सेमी., प्रतिहारी या कंचुकी आकार २.५ सेमी, बौना आकार ४.८ सेमी, स्त्री आकार ९ से.मी., स्त्री का ऊपरी धड़ आकार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520786
Book TitleSambodhi 2013 Vol 36
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages328
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size7 MB
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