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भारतीय मृण्मूर्ति कला के आधार
तनूजा सिंह
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ईश्वर ने सभी ज़ीवधारियों में सर्वश्रेष्ठ महत्त्वपूर्ण कृति मानव की बनाई है क्योंकि मानव को ही सत् और चित् प्रदान किया है और मन तथा बुद्धि का निरन्तर विकास उसे अन्य जीवधारियों से पृथक करता है। प्रारम्भिक काल भले ही आज की तुलना में कठिन रहा हो परन्तु बुद्धिबल से कई सुविधाजनक वस्तुओं उपकरणों, सामाजिक, राजनीतिक संगठनों, वैज्ञानिक तकनीकी शिल्प एवं कलाओं का विकास करते हुए जीवन यात्रा अग्रसर हो रही है । मानसिक एवं आत्मिक आनन्द की अतृप्त लालसा के साथ सौन्दर्य की खोज मानव करता रहा है। सौन्दर्य की पिपासा से ही उसे दर्शन, साहित्य, संगीत, कला और शिल्प की प्रेरणा मिली है । अतः यह कहा जा सकता है कि लालसा, जिज्ञासा मानव के विकास का ही मूल आधार है । जिसके फलस्वरूप हमें जो साक्ष्य सभ्यता के रूप में मिले हैं, तो आत्मा के रूप में संस्कृति मिली है और सभ्यता में सौन्दर्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है । संस्कृति का सम्बन्ध मस्तिष्क मन और आत्मा से है । इसीलिए सर्वश्रेष्ठ चिन्तन, मनन, कथन और कर्म को संस्कृति कहा जाता है। जिसके तहत वर्षों से विस्तृत कला - परम्परा के गतिमान का बोध इतिहास एवं पुरातत्त्व के विद्वानों ने भारत के अनेक पुरातन स्थलों की खुदाई कराकर इस देश की प्राचीनतम सभ्यता के अवशेष प्रकाश में लाये हैं जिसके फलस्वरूप हमें गुफायें, शैल चित्र तथा पुरातात्विक सामग्री तत्कालीन कला एवं संस्कृति का ज्ञान कराती है । तत्कालीन मृण्मयी मूर्तिशिल्प, बर्तनों व खिलौनों से ज्ञात होता है कि सभी स्थान संस्कृति के समृद्ध रूप हैं । ये स्वरूप चाहे मिट्टी के ही हों पर इन विषयों के उदाहरण में मिट्टी की ईटों के बने मन्दिर भीतर गांव (कानपुर) का मन्दिर के साथ ही राजस्थान के उत्खनन कार्यों से प्राप्त लगभग तृतीय शताब्दी का मौर्यकालीन निर्माणाधीन आकार बौराटनगर (जिला जयपुर) की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है जिसमें लकड़ी के खम्भे गोलाकार, गर्भगृह, चौकोरनुमा आकार में है । इसके अतिरिक्त प्रथम शताब्दी ई. का नगरी स्थान पर भी मृण्मन्दिर के उदाहरण देखे जा सकते हैं । बीकानेर में रंगमहल, सिन्ध में मीरपुरखास तो भण्डार के समान हैं जहाँ गुप्तकालीन ईटों और फलकों के शैव व वैष्णव मन्दिरों का निर्माण किया गया । ३
इसके साथ ही मथुरा व राजस्थान के ही समीपवर्ती स्थान पर सन् १९६६ में डॉ. हर्टिल के नेतृत्व में जर्मन पुरातत्ववेत्ताओं के एक दल ने सोंख नामक स्थान की खुदाई कराई जो कि मृण कला के बड़े
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