________________
120
सागरमल जैन
SAMBODHI
ने सिद्धि-विनिश्चय टीका आदि दार्शनिक कृतियों का सृजन किया। इसी कालखण्ड में श्वेताम्बर परम्परा के अभयदेव सूरि ने सिद्धसेन के सन्मति - तर्क पर वाद - महार्णव नामक टीका ग्रन्थ की रचना की। इसी क्रम में दिगम्बर आचार्य अनन्तकीर्ति ने लघुसर्वज्ञसिद्धि, बृहद्सर्वज्ञसिद्धि, प्रमाणनिर्णय आदि दार्शनिक. ग्रन्थों की रचना की थी। इसी काल खण्ड में श्वेताम्बर परम्परा में आचार्य वादिदेवसूरि हुए उन्होंने प्रमाणनयतत्वालोक तथा उसी पर स्वोपज्ञ टीका के रूप में स्यादवाद-रत्नाकर जैसे जैन न्याय के ग्रन्थों का निर्माण किया और उनके शिष्य रत्नप्रभसूरि ने रत्नाकरावतारिका की रचना की थी इन सभी में भारतीय दर्शन एवं न्याय की अनेक मान्यताओं की समीक्षा भी है। १२वीं शताब्दी में हुए श्वेताम्बर आचार्य हेमचन्द्र ने मुख्य रूप से जैन-न्याय पर प्रमाण-मीमांसा (अपूर्ण) और दार्शनिक समीक्षा के रूप में अन्ययोगव्यवच्छेदिका ऐसे दो महत्त्वपूर्ण दार्शनिक ग्रन्थों की रचना की । यद्यपि संस्कृत व्याकरण एवं साहित्य के क्षेत्र में उनका अवदान प्रचुर है, तथापि हमने यहाँ उनके दार्शनिक ग्रन्थों की ही चर्चा की है। यद्यपि १३वी, १४वी, १५वी और १६वी शताब्दी में भी जैन आचार्यों ने संस्कृत भाषा में कुछ दार्शनिक ग्रन्थों की रचना की थी, किन्तु वे ग्रन्थ अधिक महत्त्वपूर्ण न होने से हम यहाँ उनकी चर्चा नही कर रहे हैं, यद्यपि इस काल खण्ड में कुछ दार्शनिक ग्रन्थों की टीकाएं जैसे अन्ययोगव्यवछेदिका की स्यादवाद-मन्जरी नामक टीका, गुणरत्न की षडदर्शन समुच्चय की टीका आदि भी लिखी गई थी, किन्तु विस्तार भय से उन सब में जाना उचित नहीं हैं । १७वी शताब्दी में श्वेताम्बर परम्परा में उपाध्याय यशोविजय नामक एक प्रसिद्ध जैन लेखक हुए, जिनके अध्यात्मसार, ज्ञानसार आदि दर्शन के क्षेत्र में अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं । अध्यात्म के क्षेत्र में अध्यात्ममतसमीक्षा, अध्यात्मसार, ज्ञानसार आदि तथा दर्शन के क्षेत्र में जैन तर्कभाषा, नयोपदेश, नयसहस्य, न्यायालोक, स्यादवाद कल्पलता आदि अनेक ग्रन्थ प्रसिद्ध है। उनके पश्चात् १८वी, १९वी और २०वी शताब्दी में जैन दर्शन पर संस्कृत भाषा में कोई महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा गया हो यह हमारी जानकारी में नही है, यद्यपि तत्त्वार्थसूत्र की शैली पर आचार्य तुलसी के जैन-सिद्धान्त-दीपिका और मनोऽनुशासनम् नामक ग्रन्थों की संस्कृत भाषा में रचना की है, फिर भी इस काल खण्ड में संस्कृत भाषा में दार्शनिक ग्रन्थों के लेखन की प्रवृत्ति नहीवत् ही रही हैं । संस्कृत के जैन चरित काव्य एवं महाकाव्य
महापुरुषों की जीवन गाथाओं के आधार पर जैन धर्म की श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्पराओं में अनेक संस्कृत ग्रन्थों की रचना हुई है। महापुराण (आदि पुराण और उत्तर पुराण) तथा हेमचन्द्र का त्रिशष्टि शलाका महापुरुष चरित्र तो प्रसिद्ध है ही। इसके अतिरिक्त भी महापुरुषों पर अनेक पुराण और चरितकाव्य भी रचे गये । जैसे - पद्यानन्द-महाकाव्य, अजितनाथपुराण, चन्द्रप्रभचरित, श्रेयांसनाथचरित, वासुपूज्यचरित, विमलनाथचरित, शान्तिनाथपुराण, शान्तिनाथचरित, मल्लिनाथचरित, मुनिसुव्रतचरित, नेमिनाथमहाकाव्य, नेमिनाथचरित, पार्श्वनाथचरित, महावीरचरित, वर्धमानचरित, अमस्वामिचरित, प्रत्येकबुद्धचरित, केवलचरित, श्रेणिकचरित्र, महावीरकालीन श्रेणिक के परिवार के सदस्यों एवं अन्य पात्रों के चरित, प्रभावक आचार्यो के चरित, खरतरगच्छीय आचार्यों के जीवनचरित्र, कुमारपालचरित्र, वस्तुपाल-तेजपालचरित, विमलमंत्रिचरित, जगडूशाहचरित, सुकृतसागर, पृथ्वीधरप्रबंध, चावडप्रबंध, कर्मवंशोत्कीर्तिनकाव्य,