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Vol. XxxV, 2012 संस्कृत भाषा एवं साहित्य के क्षेत्र में जैन श्रमण परम्परा का अवदान 121 क्षेमसौभाग्यकाव्य आदि । इनके अतिरिक्त प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव, बारह चक्रवर्तियों एवं अन्य शलाका पुरुषो पर भी संस्कृत में अनेक रचनाएँ जैनाचार्यों ने लिखी है। इसके अतिरिक्त निम्न काव्य और महाकाव्य भी जैनाचार्यों द्वारा रचित है - जैसे - प्रद्युम्नचरितकाव्य, नेमिनिर्वाणमहाकाव्य, चन्द्रप्रभचरितमहाकाव्य, वर्धमानचरित, धर्मशर्माभ्युदय, सनत्कुमारचरित, जयन्तविजय, नरनागयणानन्द, मुनिसुव्रतकाव्य, श्रेणिकचरित, शान्तिनाथचरित, जयोदय महाकाव्य, बालभारत, लघुकाव्य, श्री धरचरितमहाकाव्य, जैनकुमारसंभव, कादम्बरीमण्डन, चन्द्रविजयप्रबंध, काव्यमण्डन आदि । संस्कृत भाषा में निबद्ध जैन कथा-साहित्य के ग्रन्थ
जैन आचार्यों ने धार्मिक एवं नैतिक आचार-नियमों एवं उपदेशों को लेकर अनेक कथाओं एवं कथा ग्रन्थों की रचना की है। पूर्वाचार्यों द्वारा रचित ग्रन्थों की टीका, वृत्ति आदि में उन कथाओं का समाहित किया गया है। इनमें धर्मकथानुयोग की स्वतंत्र रचनाएँ, पुरुषपात्र प्रधान बृहद्-कथाएँ, पुरुषप्रधान लघु कथाएँ, स्त्रीप्रधानविषयक कथाएँ, व्रत-पर्व एवं पूजा विषयक कथाएँ, परीकथाएँ, मुग्धकथाएँ, नीतिकथाएँ, आचार-नियमों के पालन एवं स्पष्टीकरण सम्बन्धी कथाएँ आदि. इन कथाओं एवं कथा-ग्रन्थों की संख्या इतनी है कि यदि इनके नाम मात्र का उल्लेख किया जाये तो भी एक स्वतंत्र ग्रन्थ बन जायेगा। ऐतिहासिक महाकाव्य एवं अन्य कथाएं
पौराणिक काव्यों एवं कथा साहित्य के अतिरिक्त जैनाचार्यो ने संस्कृत में ऐतिहासिक कथा ग्रन्थों की रचना भी की है, जो निम्नांकित है - गुणवचनद्वात्रिंशिका, व्याश्रयमहाकाव्य, वस्तुपाल-तेजपाल की कीर्तिकथा सम्बन्धी साहित्य, सुकृतसंकीर्तन, वसन्तविलास, कुमारपालभूपालचरित, वस्तुपालचरित, जगडूचरित, सुकृतसागर, पेथडचरित आदि ।
___ इसके साथ ही ऐतिहासिक संस्कृत ग्रन्थों के अर्न्तगत जैनाचार्यों ने निम्न प्रबन्ध साहित्य की भी रचना की है - प्रबंधावलि, प्रभावकचरित, प्रबंधचिन्तामणि, विविधतीर्थकल्प, प्रबंधकोश, पुरातनप्रबन्धसंग्रह आदि इन प्रबन्धों के साथ ही कुछ प्रशस्तियाँ भी संस्कृत भाषा में मिलती है वे निम्न है - वस्तुपाल
और तेजपाल के सुकृतों की स्मारक प्रशस्तियाँ, सुकृतकीर्तिकल्लोलिनी. वस्तुपाल-तेजपालप्रशस्ति, वस्तुपाल प्रशस्ति, अमस्वामीचरित की प्रशस्ति आदि ।
__इन प्रशस्तियों के अतिरिक्त कुछ पट्टावली और गुर्वावलि भी संस्कृत में मिलती है यथा - विचारश्रेणी या स्थविरावली, गणधरसार्धशतक, खरतरगच्छ बृहद्गुर्वावलि, वृद्धाचार्य प्रबंधावलि, खरतरगच्छ पट्टावलीसंग्रह, गुर्वावलि, गुर्वावलि या तपागच्छ पट्टावलीसूत्र, सेनपट्टावली, बलात्कारगण की पट्टावलीयाँ, काष्ठासंघ माथुरगच्छ की पट्टावली, काष्ठासंघ लाडबागडगच्छ पुन्नाटगच्छ की पट्टावली आदि । इनके अतिरिक्त कुछ तीर्थमालाएँ और विज्ञप्तिपत्र भी संस्कृत में लिखित है जिनमें अनेक ऐतिहासिक तथ्य समाहित है, साथ ही अनेक प्रतिमा या मूर्ति लेख भी संस्कृत में मिलते है ।
अनेकार्थकसंधानकाव्य भी जैनाचार्यों के द्वारा संस्कृत में लिखित है यथा – द्विसन्धानमहाकाव्य, सप्तसंघानकाव्य आदि । इनके अतिरिक्त समयसुन्दरगणि (१७वी शती) ने एक ही पद 'राजानोददते सौख्यम्'