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सुरेखा पटेल
SAMBODHI इस तरह, नौ पद्यों में देवी की स्तुति की गई है । यह देवी गौरी है, श्यामा है। कवि उसको शिवकान्ता भी कहता है । तो उसका नाम मातङ्गी भी बताया गया है। मातङ्गी का श्यामवर्ण मेचकाङ्गी
और श्यामलिम सौकुमार्या से सूचित किया है। उसकी दृष्टि भी अपाङ्ग के साथ श्यामवर्ण की है। उसके दर्शन करते हुए भक्त को तृप्ति नहीं होती है ।"
'नवरत्नमाला' में वर्णित देवी के गौरी, शिवकान्ता, मातङ्गी नाम प्राप्त होते है । कालिदास की 'कुमारसंभव' कृति में 'गौरी' शब्द का प्रयोग किया गया है । कालिदासने अपनी कृतियों में शिव का अच्छे ढंग से वर्णन किया है, इसीलिए उनको शैव माना गया है । कालिदास सम्बन्धित अन्यायन्य दन्तकथाओं में उनको कालि का दास माना गया है। कालिदास ने कुमारसंभव में पार्वती का गौरी स्वरूप ही बताया है कालि स्वरूप नहीं ।
कालिदास नाम कालि का दास, कालि भक्त सूचित करता है । 'नवरत्नमाला' कृति में 'मातङ्गी'.. का संदर्भ मिलता है जो कालिदास की कृतियों में कहीं भी नहीं मिलता ।
तन्त्रशास्त्र में दश महाविद्याओं के दो प्रवाह पायें जाते हैं।, कालिकुल और ताराकुल । कालिदास को कालिकुल के कवि मान सकते है, क्योंकि 'कालिदास' शब्द और 'कुमारसंभव' में शिव की वरयात्रा में कालि का वर्णन साभिप्राय पाया जाता है।
____ 'मातङ्गी' देवी का वाहन शुक है । यहाँ 'उँकारपञ्जरशुकीम' शब्द, मातङ्गी परादेवता बताई गई है और वेदान्तशास्त्र की कोयल कही गई है । जो ॐ कार से निम्नस्तर सूचित करता है । उपनिषदों में परमतत्त्व की खोज की गई है. यह साधन व उपकरण के रूप में उपलब्ध साहित्य है । इस पद्य में ही आगमविपिन (जंगल की) मयूरी कहकर विभिन्न आगमों में निरूपित परमतत्त्व वैभिन्यवाले मतों का सूचन किया है। मयूर या हंस सरस्वती के वाहन विशेष है। प्रथम पद्य के रूपक अलङ्कार से कविने अर्थगौरव से देवी का वर्णन किया है। पद्य दो से सात तक देवी का वर्णन यथातथ पाया जाता है, जो स्वभावोक्ति अलङ्कार कह सकते हैं । आठवें पद्य में यौवनवन की सारङ्गी (भवरं) और नवमें पद्य में मिथ्यादृष्टांत मध्यभाग में भी रूपक अलंकार है। नवमें पद्य के उत्तरार्ध में 'मङ्गलसङ्गीतसौरभं' कहकर उत्प्रेक्षा अलंकार का निरूपण किया है । महाकवि कालिदास की उपमा प्रसिद्ध है यहाँ 'नवरत्नमाला' में कहीं भी उपमा अलंकार का दर्शन नहीं होता है ।
स्तोत्रकाव्य में फलश्रुति का पद्य भी होता है । यह छोटा सा स्तोत्रकाव्य है। इसकी प्रधानदेवता मातङ्गी है । यहाँ कवि ने स्पष्ट रूप से कहा है - 'नवरत्नमालिकाख्यां विरचितमातङ्ग कन्यकाभूषाम्' - (पद्य - १० का पूर्वार्ध) यहाँ इस स्तोत्र को नवरत्नमालिका कहा है। मालिका छोटी होती है और माला में १०८ मनके (मोती) होते हैं । 'नवरत्नमाला' के फलश्रुति पद्य में बताया गया है कि जो इसका पाठ करता है या इस स्तोत्र को लिखता है वह वागीश्वर (वाणी पर प्रभुत्ववाला) होता है अर्थात् बनता है। यहाँ मातङ्गी देवी को सरस्वती का ही स्वरूप माना गया है । उसको गौरी और शिवकान्ता कहकर भगवती देवी पार्वती के ही दशमहाविद्याओं के देवी स्वरूप है, ऐसा बताया है ।
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