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Vol. XXXIV, 2011
महाकविश्री कालिदास कृत 'नवरत्नमाला'
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तन्त्रशास्त्र में मातङ्गी के आराधन से भुक्ति और मुक्ति दोनों प्राप्त होते हैं । वैवाहिक सम्बन्ध के लिए भी तन्त्रशास्त्रों में उसका आराधन बताया गया है । इस तरह मातङ्गी सरस्वती देवी विद्या और प्रीति की देवी है। 'दुर्गासप्तशती' (ध्यानमंत्र ) सप्तम अध्याय के आरंभ में मातङ्गी का वर्णन इस तरह किया गया है ।
अर्थात् "रत्न के सिंहासन पर बैठी हुए श्यामलाङ्गी देवी, तोता (शुक) बोल रहा है, वह सुन रही है । उनका एक पैर कमल पर रखा हुआ है, मस्तक पर अर्धचन्द्र है और वह वीणावादन कर रही हैं। उन्होंने रक्तवर्ण की चुस्त चोली पहनी है । मस्तक के केश पर लाल कमल की फूलों की माला (वेणी) बँधी है । हाथ में शङ्खपात्र है, जो मदिरा से भरा हुआ है और ललाट में नकशी की हुई है । "
'नवरत्नमाला' में इस पद्य का ही विस्तृतीकरण पाया जाता है ।
यही ‘मातङ्गी' देवी धर्मारण्य पुराण में मोढेश्वरी कही गई है. जो मोढ ब्राह्मण वणिकों की कुलदेवी है। उत्तर गुजरात में मोढेरा गाँव का नाम इस देवी पर से पाया जाता है। इसके स्वरूप से ही कालिकुल की देवी प्रतीत होती है, और मदिरापान वाममार्ग का सूचन करता है । प्रसिद्ध महाकवि कालिदास की कृतियों में देवी का ऐसा कुछ वर्णन नहीं मिलता है । इससे इस कृति का कर्तृत्व हमें संदिग्ध अवस्था में रख देता है। एम. कृष्णमाचारियरजीने 'नवरत्नमालिका' स्तोत्र को शंकराचार्य की कृति बताई है, (पृ. ३२३) और एक 'नवमालिका' को एम. कृष्णमाचारियरजीने शृङ्गारमञ्जरी को कवि की नाटिका बताई है, जो स्तोत्र काव्य नहीं है (पृ. ३५५) । इस तरह काव्यमाला में प्रसिद्ध हुई 'नवरत्नमाला' या 'नवरत्नमालिका' भिन्न कृति ही है, जो महाकवि कालिदास के नाम पर बताई गई है परन्तु, आन्तर्परीक्षण से यह कृति हम कालिदास की नहीं मान सकते । .
टिप्पणी
१. सरिगमपधनिरतां तां वीणासंक्रान्तकान्त हस्तान्ताम् ।
शान्तां मृदुलस्वान्तां कुचभरतान्तां नमामि शिवकान्ताम् ॥ - नवरत्नमाला : ५ अवटुतटघटितचूलीपालीं तालीपलाशताटङ्काम् ।
वीणावादन वेलाकम्पितशिरसं नमामि मातङ्गीम् ॥ - नवरत्नमाला : ६ मणिभङ्गमेचकाङ्ग मातङ्गीं नौमि सिद्धमातङ्गीम्
- यौवनवनसारङ्गी संगीताम्भोरुहानुभवभृङ्गीम् ॥ - नवरत्नमाला : ८
३. श्यामलिम् सौकुमार्यामानन्दा मन्दसंपदुन्मेषाम् ।
तरुणिमकरुणापूरां मदजलकल्लोललोचनां वन्दे ॥ - नवरत्नमाला : ३
२.
'उँ ध्यायेयं रत्नपीठे शुककलपठितं शृण्वतीं श्यामलाङ्गीं न्यस्तैकाङ्घ्रि शशिशकलधरां वल्लकीं वादयन्तीम् कल्हाराबद्धमालां नियमितविलसच्चोलिकां रक्तवस्त्रां मातङ्गी शङ्खपात्रां मधुरमधुमुदां चित्रकोद्भासिमालाम् ॥'
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