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________________ जैनधर्म और श्रुतदेवी सरस्वती 75 Vol. XXXIII, 2010 फलक दो का जो अभिलेख है, उसका वाचन इस रूप में हुआ है : सिद्धम् । सं. ९५ के ग्रीष्म ऋतु के द्वितीय मास के १८ वे दिन (सम्भवतः शक संवत ९५ के वैशाख शक्ल तृतीया या अक्षयतृतीया कोः कोट्टियगण, स्थानिककुल वैरा शाखा की आर्य अर्हत् (दिन) की शिष्या गृहदत्त की पुत्री एवं धनहस्तिश्रेष्ठी की पत्नी द्वारा (विद्या) दान । ___ इस अभिलेख में देवी और श्रमण के बीच बड़े अक्षरों में 'कण्ह' शब्द यही सूचित करता है कि यह अंकन आर्यकण्ह का है । किन्तु देवी अंकन के समीप 'विद्या' का अंकन कहीं यह तो नहीं बताता है - यह 'विद्या' का अंकन है। इस प्रकार आर्यावती, विद्या एवं सरस्वती - ये तीनों पृथक्-पृथक् है या किसी एक के सूचक पर्यायवाची नाम हैं, यह विचारणीय है। कहीं आर्यावती, विद्या और सरस्वती एक तो नहीं है ? इस सम्बन्ध में प्रारम्भ में तो मैं स्वयं भी अस्पष्ट ही था, किन्तु संयोग से मुझे प्रणव शंकरसोमपुरा की कृति भारतीय शिल्प संहिता के कुछ जिराक्स पृष्ठ प्राप्त हुए, जिसके पृष्ठ १४० पर सरस्वती के (१२) बारह पर्यायवाची नामों का उल्लेख मिला । इसमें सरस्वती के निम्न १२ पर्यायवाची नामों का उल्लेख किया गया है - १. महाविद्या, २. महावाणी, ३. महाभारती, ४. आर्या, ५. सरस्वती, ६. ब्राह्मी, ७. महाधेनू, ८. वेदगर्भा, ९. ईश्वरी, १०. महालक्ष्मी, ११. महाकाली, १२. महासरस्वती । इससे मुझे ऐसा आभास हुआ कि प्राचीनकाल में सरस्वती को ही विद्या, आर्या (वती) सरस्वती आदि नामों से जाना जाता था । जैन परम्परा में भी भाषाओं में आर्यभाषा और अनार्यभाषा का उल्लेख मिलता है. इससे यह फलित होता है कि आर्या (आर्यावती) का सम्बन्ध सम्यक् ज्ञान से अर्थात् जिनवाणी से है और यह सरस्वती का ही एक उपनाम है, इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि वस्तुतः मथुरा में उपलब्ध विद्या एवं आर्यावती भी सरस्वती ही है। उस ग्रन्थ में सरस्वती के बारह नाम और लक्षण इस प्रकार दिए गए है :अथ द्वादश सरस्वती स्वरूपाणि (देवतामूर्ति प्रकरणम्) एकवक्ताः चतुर्भूजा मूकुटेन विराजिताः । प्रभामंडलसंयूक्ताः कुंडलान्विशेखरीः ॥१॥ इति सरस्वती लक्षणानि अक्षपद्म वीणा पुस्तकर्ममहाविद्या प्रकीर्तिता । इति महाविद्या १ अक्ष पुस्तक वीणा पौः महावाणी च नामतः । इति महावाणी २ वराक्षं पद्मपुस्तके शुभाबहा च भारती । इति भारती ३ वराक्षपदम् पुस्तके सरस्वती प्रकीर्तिता ॥३॥ इति सरस्वती ४ वराक्षं पुस्तकं पद्मं आर्यानाम् प्रकीर्तिता ॥ इत्यार्या ५ वर पुस्तकपद्माक्ष ब्राह्मी नाम सुखावहा ॥६॥ इति ब्राह्मी ६ वर पद्म वीणा पुस्तकै: महाधेनुश्च नामतः । इति महाधेनुः ७ वरं च पुस्तकं वीणा वेदगर्मा तथाभ्वुजम् ॥५॥ इति वेदगर्भा ८
SR No.520783
Book TitleSambodhi 2010 Vol 33
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah, K M patel
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages212
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size21 MB
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