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________________ Vol. XXXIII, 2010 जैनधर्म और श्रुतदेवी सरस्वती दोनों शिल्पांकन एक समान होने से यह मानने में कोऊ बाधा नहीं है। ये दोनों फलक आर्यावती से सम्बन्धित है । हम क्रमशः उनके चित्र एवं विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं : प्रथम फलक Mrinmarathi srusumitioindian SaritaininTERezaeyidat Aur R LATE ... a. a var. and प्रस्तुत चित्र में 'आर्यावती' मध्य भाग में खड़ी हुई, उसका एक हाथ वरद मुद्रा में है और दूसरा हाथ कमर पर है । उसके एक ओर एक चवरधारिणी स्त्री खड़ी हुई है, उसके दूसरी ओर दो स्त्रियां खड़ी हुई हैं। उनमें प्रथम के हाथ में दण्ड है और दूसरी के हाथों में 'माला' है। आर्यावती के कमर के नीच के भाग में एक बालक या पुरुष खडा हआ दिखाया गया है, जो दोनों हाथ जोड़े हुए नमस्कार की मुद्रा में स्थित है। इस फलक के उपर जो अभिलेख ब्राह्मी लिपि में है, उसे निम्न रूप में पढा गया है अर्हत् वर्धमान को नमस्कार हो । स्वामी महाक्षत्रप सोडास संवत्सर बयालीस के हेमन्त ऋतु के द्वितीय मास की नवमी तिथि को हरित के पुत्र पाल की भार्या कोत्सीय अमोहनीय के द्वारा अपने पुत्रों पालघोष, पोठघोष और धनघोष के साथ आर्यावती की प्रतिष्ठा की गई । आर्यावती अर्हत की पूजा के लिए । इस अभिलेख के प्रारम्भ अर्हत् वर्धमान को नमस्कार से तथा आर्यावती अर्हतों की पूजा के लिए। इस उल्लेख से इतना तो निश्चित हो जाता है कि यह अभिलेख जैन परम्परा से सम्बन्धित है । मेरी दृष्टि में अर्हत् के स्थान पर आर्हत् पाठ अधिक समीचीन लगता है, क्योंकि प्राचीन काल में जैनर्धम के अनुयायी 'आहत्' (अर्हत् के उपासक) कहे जाते थे ।
SR No.520783
Book TitleSambodhi 2010 Vol 33
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah, K M patel
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages212
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size21 MB
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