SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Vol. XXXIII, 2010 जैनधर्म और श्रुतदेवी सरस्वती यदि विश्व में सरस्वती की कोई सबसे प्राचीन प्रतिमा है तो वह जैन सरस्वती ही है (देखे चित्र २)। BANTRA verment insan en cate Jiorithmean HAR Ahmein ARKA rammaka वर्तमान में उपलब्ध सरस्वती की यह प्रतिमा मस्तकविहीन होकर भी हाथ में पुस्तक धारण किए हुए है एवं ब्राह्मी लिपि के अभिलेख में सरस्वती के उल्लेख से युक्त है। इससे यह सिद्ध हो जाता है कि ईसा की प्रथम या द्वितीय शताब्दी में जैन परम्परा में श्रुतदेवी या सरस्वती की उपासना प्रारम्भ हो गई थी । मथुरा से प्राप्त इस सरस्वती को द्विभुजी के रूप में ही अंकित किया गया है, किन्तु उसके एक हाथ में पुस्तक होने से यह भी स्पष्ट है कि जैनों में प्रारम्भिक काल में सरस्वती या श्रुतदेवी की प्रतिमा द्विभुजी होती थी । यह स्पष्ट है कि जैनों में प्रारम्भिक काल में सरस्वती की श्रुतदेवी के रूप में ही उपासना की जाती थी । अन्य परम्पराओं में भी उसे वाक्देवी कहा ही गया है. यद्यपि भगवतीसूत्र के नवम् शतक के ३३ वें उद्देशक के १४९ सूत्र में 'सरस्वती' शब्द आया है । किन्तु वहाँ वह जिनवाणी का विशेषण ही है। इसी शतक के इसी उद्देशक के १६३ वें सूत्र में भी “सव्वभासाणुगामिणीए सरस्सईए जोयणणीहारिणा सरेणं अद्धमागहाए भासाए भासाइधम्म परिकहेइ" इससे वह जिनवाणी (श्रुतदेवता) ही सिद्ध होती है । इसके अतरिक्त भगवतीसूत्र के १० वे शतक में असुरकुमारों में गन्धर्व-इन्द्र गीतरति की चार अग्रमहिषियों में भी एक का नाम 'सरस्वती' उल्लेखित है । इसी प्रकार ज्ञाताधर्मकथा के द्वितीय श्रुत स्कन्ध के पंचम वर्ग के ३२ अध्ययनों में ३२ वें अध्ययन का नाम भी 'सरस्वती' है । यहाँ एक देवी के रूप में ही उसका उल्लेख है, किन्तु ये सभी उल्लेख अति संक्षिप्त हैं । इसी क्रम में अंगसूत्रों में विपाकसूत्र के दूसरे श्रुत स्कन्ध 'सुखविपाक' के दूसरे अध्ययन में ऋषभपुर नगर के राजा की रानी का नाम भी सरस्वती के रूप में उल्लेखित है, किन्तु भगवतीसूत्र के नवम् शतक में उल्लेखित जिनवाणी के साथ इसका कोई साम्य नहीं देखा जा सकता है । यह तो केवल एक सामान्य स्त्री है। यहाँ मात्र नाम की समरूपता ही है । स्थानागसूत्र में भी गंधर्वो के इन्द्र गीतरति की पत्नी का नाम सरस्वती उल्लेखित है, जो भगवतीसूत्र के १० वें शतक के उल्लेख की ही पुष्टि करता है ।
SR No.520783
Book TitleSambodhi 2010 Vol 33
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah, K M patel
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages212
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy