SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 130 कमला गर्ग, रजनी पाण्डेय SAMBODHI अपने कार्य और क्षेत्र का बोध कराते थे । 'गुणीजन खाना' संगीत विषयक विभाग था । 'सूरतखाना' पोथीखाने से संबन्धित था । 'जवाहरखाना' आभूषणों का विभाग था । 'तोशाखाना', 'रंगखाना' तथा 'छापखाना' वस्त्र विभाग के अन्तर्गत आते थे । इन कारखानों में कलाकार, शिल्पकार आदि थे । यह एक प्रकार से राजदरबार की नौकरी थी ।“ कारखानों के समस्त कलाकार, शिल्पकार, दस्तकार तथा कर्मचारी कारखाने के अधिकारी के अन्तगर्त कार्य करते थे और मात्र राजघराने हेतु, १९ महाराजाओं की रुचि अनुसार वस्त्र, आभुषण, दैनिक उपभोग की वस्तुएँ, राजमहलों की शोभा बढ़ाने के लिए भी ये विभाग अपनी सेवाएँ प्रदान करते थे । कलाकारों की कलात्मक कृतियाँ जयपुर के राजमहलों तथा राजभवनों की शोभा बढ़ाने के साथ-साथ देश तथा विदेश में भी राज्य की ओर से भेजी जाती थी । जहाँ इनको बड़ी प्रसिद्धि और प्रशंसा मिलती थी । राजदरबार से जुड़े इन कलाकारों के अतिरिक्त कला शिल्पियों का एक वर्ग ऐसा भी था जो आत्मनिर्भर था और जन साधारण हेतु कार्य करता था । ये कलाकार भी समय समय पर राजदरबार में अपनी बनाई हुई कलाकृतियों को भेंट करते थे । गुणीजन खाना जयपुर राजदरबार में संगीत के विशेष संरक्षण के लिये एक विभाग 'गुणीजन खाना' था, जहाँ उच्च कोटि के कलाकार आश्रय पाते थे । यह विभाग उन ३६ कारखानों में से एक था । गुणीजन खाने का प्रारम्भिक इतिहास स्पष्ट प्राप्त नहीं होता । किन्तु यही संभावना अधिक प्रबल होती है कि सवाई जयसिंह ने जयपुर नगर में अन्य विभागों के साथ ही 'गुणीजन' खाना भी स्थापित किया होगा ।२° विदेशी लेखिका जोन एल. अर्डमैन के अनुसार भी गुणीजन खाना का स्थापना काल जयपुर स्थापना से ही माना जाता है ।२१ किन्तु यह उल्लेख भी प्राप्त होता है कि सवाई जयसिंह आमेर से अपनी राजधानी जयपुर लाने के साथ ही राजदरबार के छत्तीस विभाग भी यहाँ ले आये थे, जहाँ इनकी पुनर्स्थापना करके पुनः व्यवस्थित किया गया । अपनी स्थापना के पश्चात् गुणीजन खाने को अपने समकालीन कछवाहा राजवंश से निरन्तर सहयोग तथा संरक्षण प्राप्त होता रहा । वंशक्रम में समस्त नरेशों ने गुणीजन खाने को सम्मान दिया । जयपुर रियासत का गुणीजन खाना गायकों, वादकों और नर्तकों को राज्याश्रय तथा संरक्षण देने वाला विभाग था । यह विभाग छत्तीस कारखानों में अपना विशिष्ट स्थान रखता था । आमेर, जयपुर नरेशों के दरबार में गुणी संगीतज्ञ फले फूले और संगीत जगत में जयपुर का नाम ऊंचा उठाया । प्रारम्भ में गुणी जन खाना खजाना बेहला' विभाग के अन्तर्गत था, जो महाराजा का निजि विभाग था । १८८० ई. से पहले गुणीजन खानों के प्रधान अधिकारी मुख्य तथा वरिष्ठ संगीतज्ञ होते थे, जो महाराज को संगीत शिक्षा देते थे तथा किसी सीमा तक महाराज के मित्र भी कहलाते थे । २२ गुणीजन खाने में सेवारत कलाकार राजदरबार के आयोजनों और उत्सवों पर अपनी कला का प्रदर्शन करते थे । २३ महाराज प्रसन्न होकर उन्हें पुरस्कार में धन, जागीर आदि प्रदान करते थे । गुणीजन खाने के कलाकार विभिन्न वर्गों तथा श्रेणियों में विभाजित थे । तत्कालीन परिपाटी के अनुसार 'हरे
SR No.520783
Book TitleSambodhi 2010 Vol 33
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah, K M patel
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages212
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy