________________
Vol. XXXIII, 2010
जयपुर नरेशों का संगीत प्रेम
129
तथ्य किंचित् संशयपूर्ण हो सकता है । राजा मानसिंह कालीन पमाण इस विषय में उपलब्ध प्रथम प्रमाण हैं । राजा मानसिंह के दरबार के कवि 'अमृतराय'ने १६८५ ई. के अपने ग्रन्थ 'मानचरित' में आम्बेर के महलों में वाद्ययन्त्रों के संगीत का वर्णन किया है । कवि ने लिखा है कि आमेर के महलों में जलतरंग, वीणा, रबाब और मृदंग आदि वाद्य यंत्र बजाये जाते थे ।१४
"कहूँ त बीन प्रवीन जंत्र जति बाजहिय । कहूँ मुरज बंधान जान जति साजहिय ॥ कहूँ अवझ झंकार झल्लुरि बजई । जन तरंग उपपंग ताल करतल सजई ॥ कहूँ सोर सरवीन सरस सर मंडरिय ।
ज्ञांच्यिनाक रबाब वेणु विधि किन्नरिय ॥"१५ राजा मानसिंह के काल में संगीत का चलन ही इसका पुष्ट प्रमाण है कि मानसिंह से पहले भी आमेर दरबार में संगीत परम्परा रही होगी, तथापि इसका प्रचलन एवं प्रयोग अपेक्षाकृत कम रहा होगा, यह माना जा सकता है, किन्तु इतना निश्चित है कि उनके पूर्व भी राजदरबार में कलावन्त आश्रय पाते थे और संगीत परम्परा को संरक्षण प्राप्त था ।
काव्य ग्रन्थ में वाद्ययंत्रो का उल्लेख आमेर दरबार के संगीत प्रेम को दर्शाने के साथ-साथ १६वीं शताब्दी में उपलब्ध तथा प्रयोग होने वाले संगीत वाद्यो के अध्ययन का भी अवसर प्रदान करता है। आमेर दरबार में १७वीं तथा १८वीं सदी में बजाया जाने वाला बृहदाकार वाद्ययंत्र 'रबाब' राजकीय संग्रहालय, जयपुर में प्रदर्शित है। ___राजदरबार में राजघराने के विभिन्न कार्यों तथा विभागों की व्यवस्था सुचारु रूप से चलाने के लिये कारखानों की स्थापना की गई थी । ये २६ विभाग थे । इनकी रचना मुगल दरबार के 'छत्तीस कारखानों' के आधार पर की गई और इनके फारसी नामों का हिन्दी अनुवाद किया गया था। इस विषय में जयसिंह पर लिखे गये ग्रन्थों में निम्न वर्णन मिलता है
"तह रहे कारखाने छत्तीस ॥१५१॥ यह हुतौ कारषाने त नौस, परसी नाम ता मद्धि दोंस ।
नृपकाढ हि वी नाम किन, गृहसंग्यायह डानी नवीन ॥ १४२ ॥"९७ ___ ये विभाग आमेर जयपुर के शासकों के विभिन्न राज्यकालों में विभिन्न स्तर पर महत्त्व तथा संरक्षण प्राप्त करते रहे । इन छत्तीस कारखानों को जयपुर राजदरबार में आवश्यकताओं और सुविधाओं के अनुसार कलाकौशल, हस्तकौशल, प्रदर्शनात्मक कलाकौशल, राजघराने के दैनिक व घरेलू कार्य कलाप और राज्याधिकारियों के आधार पर व्यवस्थित किया गया ।
इन कारखानों अथवा विभागों का इस प्रकार नामकरण किया गया था कि वे अपने नामों से ही