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________________ Vol. XXXIII, 2010 प्राकृत भाषा : जितनी सहज उतनी सरल 123 संस्कृत में रचनाएँ कठोर अर्थात् नीरस होती हैं, प्राकृत भाषा में की गई रचना सुकुमार अर्थात् सरस होती है। ईसीसिचुम्बिआई भमरेहिं सुउमारकेसरसिहाईं। ओदंसअन्ति दअमाणा पमदाओ सिरीसकुसुमाइं ॥ शाकुन्तलम् १-४ ईषदीषच्चुम्बितानि भ्रमरैः सुकुमारकेसरशिखानि । . अवतंसयन्ति दयमानाः प्रमदाः शिरीषकुसुमानि ॥ संस्कृतम् भ्रमरों ने जिन्हें धीमे धीमे चूमा है और जिनका केसरान्त अत्यन्त कोमल है ऐसे शिरीष कुसुमों को युवतियाँ प्यार से अपने कानों पर सजा रही हैं । ऊद्धच्छो पिअइ जलं जह जह विरलंगुली चिरं पहिओ । पावालिआ वि तह तह धारं तणुअंपि तणुएइ ॥ सप्तशतीसार १३ उर्ध्वाक्षः पिबति जलं यथा यथा विरलाङ्गुलिश्चिरं पथिकः । प्रपापालिकाऽपि तथा तथा धारां तनुं वितनुते हि ॥ संस्कृतम् प्यासा पथिक पानी पिलाती हुई प्रमदा के चन्द्रमुख की सुधा का आकण्ठ पान कर रहा है । इस रोमांचकारी अनुभव का अधिक समय तक आस्वादन करने के लिए वह अपनी अंगुलियों के बीच से पानी निकल जाने देता है और कामिनी भी उत्कण्ठावश पथिक के प्रति उदार होकर पानी की पतली धार को और भी पतली कर रही है। ___ इन प्रसंगों से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्राकृत संदर्भ के अर्थ को जानने के लिये व्याकरण के सूत्रों को याद करना उतना आवश्यक नहीं जितना उस संदर्भ का पुनः पुनः पठन । इस पुनःपठन से अधिकांश प्राकृत-संदर्भ स्पष्ट हो सकेंगे ऐसा मेरा विश्वास है। बीएलआईआई द्वारा आयोजित २१वीं ग्रीष्म-पाठशाला के अवसर पर दिनांक २१-५-०९ को दिया गया भाषण । 100
SR No.520783
Book TitleSambodhi 2010 Vol 33
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah, K M patel
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages212
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size21 MB
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