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________________ जयपुर नरेशों का संगीत प्रेम कमला गर्ग रजनी पाण्डेय जयपुर उन सूर्यवंशी महाराजाओं की वीर भूमि है जिन्होंने इतिहास के पृष्ठों पर अपनी शौर्य गाथाएँ अंकित करने के साथ-साथ सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्रों में प्रगतिशील तत्त्वों को भी सहयोग दिया । जयपुर उन राजपूत नरेशों की कलावसुन्धरा है, जिनकी परिष्कृत कलात्मक अभिरुचि ने कला तथा साहित्य को सृजनात्मक गति दी और भारतीय संस्कृति को पर्याप्त सरंक्षण दिया । झूथाराम सिंधवी मंदिर से प्राप्त विक्रम संवत् १७१४ अर्थात् १६५७ ई. के अभिलेख' में राजस्थान की कलानगरी जयपुर की शोभा का वर्णन अत्यन्त सुंदर किया गया है "वापी कूप ततड़ागादि मंडिते विषये वरे ढूँढ नाम्नि विख्याते संभृते सुजनैर्जनैः ॥१॥ वेनैनंदन संकारोः सर्व्वन्तु फलदायकेः क्षेत्रै स (श) स्य भृतैर्यस्तु विभाति विषयोवरः ॥ २ ॥ अम्बावती राजधानी राजते राजवैश्मभिः हेमर्जिन गेह ब्र्हेर्टिरत्न वेश्मभिः ॥ ३ ॥"२ अर्थात् 'ढूँढ नाम से विख्यात देश की राजधानी अम्बावती वापी, कूप, तङाग आदि से मंडित है। यहाँ के वन तथा नंदन कानन समस्त ऋतुओं में फलदायक हैं । यहाँ के राजपुरुषों के भवन शोभायमान हैं तथा जैन मंदिर स्वर्ण कलशों से सुशोभित हैं ।' ___जयपुर साधारण नगरों की भाँति मात्र भवनों, सड़कों, उद्यानों एवं मंदिरों का नगर नहीं है, जो अपने नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं तथा सुविधाओं की पूर्ति करता हुआ इतिहास में बिना अपनी पहचान की छाप दिये अपनी काल यात्रा पूरी करता है । यहाँ के भवनों, राजप्रसादों, देवगृहों एवं उद्यानों आदि समस्त वास्तुशिल्प में कलात्मकता का प्रतिबिम्ब है और है मानव की सौन्दर्यप्रियता की शाश्वत भावना का दर्शन। जिसने इस नगर के वास्तु शिल्प को 'पत्थरों में साकार स्वप्न'३ नाम दिलवाया । जयपुर के स्थापत्य कौशल अपनी समुद्ध कला परम्परा व सांस्कृतिक वैभव की गाथा
SR No.520783
Book TitleSambodhi 2010 Vol 33
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah, K M patel
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages212
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size21 MB
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