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यास्क एवम् पाणिनि - काल तथा विषयवस्तु का अन्तराल*
वसन्तकुमार म. भट्ट
भूमिका:-सृष्टि के आरम्भ में साक्षात्कृतधर्मा ऋषियों ने वेदमन्त्रों के दर्शन किये थे । तत्पश्चात् इन वेदमन्त्रों के संहितापाठ या पदपाठ, तथा प्रातिशाख्यादि की रचना हुई । इस के बाद षड् वेदाङ्गो की रचना हुई । इनमें से वेदमन्त्रों का अर्थघटन करने के लिए निरुक्त एवम् व्याकरण – वेदाङ्ग का महत्त्व सबसे अधिक है। किन्तु निरुक्तविद्या तथा व्याकरण-विद्या का उद्भव कब हुआ था – यह निश्चित रूप से हम नहीं जान सकते है। क्योंकि इन विद्याओं का उद्भव तो वेदमन्त्रों में भी देखा गया है। पाणिनि और यास्क के ग्रन्थों में अनेक पुरोगामी आचार्यों के मतों का नामशः उल्लेख प्राप्त होता है। परन्तु इन विद्या-सम्बन्धी स्वतन्त्र ग्रन्थों की रचना "इदं प्रथमतया" किस आचार्य ने की थी - वह अद्यावधि अज्ञात रहा है । इस तरह वेदाङ्ग के रूप में जिसको स्वीकृति मिली है वे दोनों – यास्क का निरुक्त, तथा पाणिनि की अष्टाध्यायी – में से कौन पहेला है ? उसका निर्णय करना भी विवाद से परे नहीं है।
__ यास्क पाणिनि के पुरोगामी आचार्य है – ऐसा परम्परागत मत बहुशः प्रचलित है। गोल्डस्टूकर कहेते है कि - पाणिनि ने जो यस्कादिभ्यो गोत्रे । २-४-३३ सूत्र से यास्क शब्द की व्युत्पत्ति दी है, उससे यह सूचित होता है कि पाणिनि से पहेले यास्क हो गये थे । एवमेव, उपसर्गों की चर्चा के दौरान यास्क ने पाणिनि का नामोल्लेख नहीं किया है, अत: हम कहे सकते है कि पाणिनि से पूर्वकाल में ही यास्क पैदा हुए थे ॥
लिबीश, मूलर और मेहेन्दळेजी के मत में पाणिनि यास्क से पहेले हुए थे । गोल्डस्टूकर का प्रतिवाद करते हुए ये विद्वान् लोग कहते है कि पाणिनि का पूर्वोक्त सूत्र यास्क शब्द की केवल एक गोत्र-नाम के रूप में ही सिद्धि प्रदर्शित करता है। उससे निरुक्तकार यास्क का ही निर्देश हो रहा है - ऐसा कहेना दुराकृष्ट है । तथा यास्क ने उपसर्गों की चर्चा में पाणिनि का नामोल्लेख नहीं किया है । क्योंकि दोनों के शास्त्रों का स्वरूप ही सर्वथा भिन्न है, अतः यह आवश्यक ही नहीं था कि यास्क अपने निरुक्त में उपसर्गों की चर्चा में पाणिनि का नामोल्लेख करें। दूसरी और, पॉल थिमे कहते है कि यास्क को पाणिनि के व्याकरण
★ महर्षि पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय, उज्जयिनी, द्वारा आयोजित पाणिनि विषयक राष्ट्रिय संगोष्ठी
(25-27 जून, 2009) में प्रस्तुत आलेख ।