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Vol. XXXII, 2009 काव्यप्रकाश-सङ्केतकार आचार्य माणिक्यचन्द्रसरि के स्वरचित उदाहरण
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१९७४ ई. में (प्रथम सम्पुट) व १९७७ ई. में (द्वितीय सम्पुट) के रूप में प्रकाशित किया था । इस संस्करण में 'काव्यप्रकाश-सङ्केत' के साथ 'मधुमती' टीका भी छपी है । यही संस्करण अब तक प्रकाशित संस्करणों में उत्तम है, इसका सम्पादन न्यायव्याकरण-साहित्यालङ्कार-विद्वान् एन्. एस्. वेङ्कटनाथाचार्यने किया था ।
यद्यपि सङ्केत के उपलब्ध संस्करणों में यह सर्वोत्तम है, फिर भी अनेक स्थलों पर इसमें भी पाठशोधन की आवश्यकता है। यह कार्य 'काव्यप्रकाश-सङ्केत' के उपलब्ध अन्य सभी हस्तलेखों के आधार पर किया जाना अपेक्षित है । इस प्रकार पुनः इसके एक समीक्षात्मक संस्करण की आवश्यकता है, जिसमें अब तक प्रकाशित संस्करणों की त्रुटियों का निराकरण हो । यदि सुयोग रहा तो हम यह कार्य सम्पन्न करना चाहते हैं । पूर्व निर्दिष्ट ये तीनों ही संस्करण वर्तमान में क्रयार्थ अनुपलब्ध हैं। काव्यप्रकाश-सङ्केत में उपलब्ध माणिक्यचन्द्र-रचित पद्यों की संख्या
'संङ्केत' में माणिक्यचन्द्रसूरि के ५० पद्य हैं, जिनमें 'वर्णच्युत' के उदाहरणभूत 'सिद्धि' छन्द से वर्णच्युति पूर्वक बनने वाले दो पद्य भी सम्मिलित हैं । एक अन्य 'न्यायशालिनि भूपाले' यह पद्य 'पूज्यानाम्' करके सङ्केतकार ने उद्धृत किया है, उसे भी यहाँ सम्मिलित किया है । इस प्रकार यहाँ कुल ५१ पद्य हो गए हैं। .
इनमें जो उदाहरण पद्य हैं, वे 'स्वम् इदम्' इत्यादि सूचना के साथ 'सङ्केत' में दिए हैं । इनके अतिरिक्त माणिक्यचन्द्र द्वारा रचित अन्य प्रसङ्गागत पद्य जो 'सङ्केत' में आए हैं, उनका भी यथावस्थित क्रम से सङ्कलन कर इस शोधपत्र में विवरण दिया जा रहा है। उदाहरणेतर अन्य प्रसङ्गागत पद्य इस प्रकार हैं -
ग्रन्थारम्भ के ३ पद्य, रसनिष्पत्ति-विषयक मतों की समीक्षा के ३ पद्य, प्रायः प्रत्येक उल्लास के आरम्भ या अन्त में दिए जाने वाले 'सङ्केत' के प्रशंसापरक ११ पद्य तथा ग्रन्थान्त में गुरुपरम्परा-वर्णन के ९ पद्य व इसके अनन्तर काल-निर्देशक एक अन्तिम पद्य । इस प्रकार उदाहरणेतर पद्यों की संख्या कुल मिलाकर २७ है । इनमें उदाहरणभूत २३ पद्यों को मिला देने से पूर्वोक्त ५० संख्या पूरी हो जाती है । 'पूज्यानाम्' करके दिया हुआ एक श्लोक इनसे अतिरिक्त है । पद्यों के साथ कोष्ठक में दी गई पृष्ठ-संख्या आनन्दाश्रम ग्रन्थमाला-संस्करण के अनुसार है । सङ्केतगत पद्यों का विवरण
(ग्रन्थारम्भे) सर्वज्ञवदनाम्भोजविलासकलहंसिकाम् । विशुद्धपक्षद्वितयां देवीं वाचमुपास्महे ॥१॥
(पृ० १) सर्वज्ञ (जिन या ब्रह्मा) के मुखकमल में विलसित होने वाली (नित्यानित्य रूप) दो निर्मल पक्षों वाली राजहंसी रूप वाग्देवी की हम उपासना करते हैं ।