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विजयपाल शास्त्री
SAMBODHI
माणिक्यचन्द्र-परिचय
जैनमुनि आचार्य माणिक्यचन्द्र सूरि गुजरात की विद्वत्परम्परा के एक महान् विद्वान् व उच्चकोटि के कवि थे। ये श्वेताम्बर जैनपरम्परा के मुनि थे। धोलका गुजरात के राजा वीरधवल व उनके पुत्र वीसलदेव के प्रसिद्ध महामात्य वस्तुपाल से इनका निकट सम्पर्क व सख्य था । महामात्य वस्तुपाल स्वयं एक महान् कवि योद्धा व मन्त्रधर थे । वे कवियों व विद्वानों के आश्रयदाता और प्रोत्साहनकर्ता के रूप में अतीव प्रसिद्ध थे । उदयप्रभसूरि के शिष्य जिनभद्र ने संवत् १२९०वि० में रचित अपनी 'प्रबन्धावली' में महामात्य वस्तुपाल व आचार्य माणिक्यचन्द्रसूरि के सम्पर्क का उल्लेख किया है । इससे माणिक्यचन्द्रसूरि का वस्तुपाल का समकालिक होना निश्चित है तथा इनकी रचनाएँ उक्त महामात्य के प्रोत्साहनकाल में ही लिखी गई थीं, यह भी स्पष्ट है । वस्तुपाल का निधन माघ कृष्णा ५ विक्रम संवत् १२९६ में हुआ था ।
माणिक्यचन्द्रसूरि राजगच्छ के श्रीसागरचन्द्रसूरि के शिष्य थे। इन्होंने श्री सागरचन्द्रसूरि के गुरु (अपने दादागुरु) श्री नेमिचन्द्रसूरि से भी विद्याध्ययन किया था । श्री नेमिचन्द्रजी के गुरु श्री भरतेश्वरसूरि थे वे उनके गुरु श्रीशीलभद्रसूरि थे । यह गुरुपरम्परा 'सङ्केत' के अन्त में स्वयं माणिक्यचन्द्रसूरि ने श्लोकबद्ध रूप में वर्णित की है।
उक्त गुरुपरम्परा के अनन्तर माणिक्यचन्द्रने एक श्लोक में 'सङ्केत' के रचनाकाल का जो निर्देश किया है, उसके आधार पर समीक्षक विद्वान् इसका रचनाकाल १२६६ विक्रम संवत् मानते हैं । कालनिर्देश-विषयक यह श्लोक इस लेख के अन्त में विवरण सहित दिया है । माणिक्यचन्द्रसूरि की अन्य रचनाएँ- आचार्य माणिक्यचन्द्रसूरि प्रौढ शास्त्रीय वैदुष्य से विभूषित होने के साथ ही सहज कवित्वशक्ति के भी धनी थे । उनकी यह शक्ति काव्यप्रकाश में प्रस्तुत किए उनके स्वरचित उदाहरणों व अन्य पद्यों से पद पद पर लक्षित होती है । 'सङ्केत' टीका में प्रस्तुत ये उदाहरण व उनके द्वारा रचे गए अन्य प्रसङ्गागत पद्य उनकी कवित्वशक्ति के उत्तम निदर्शन हैं । उक्त रचना के अतिरिक्त माणिक्यचन्द्रसूरि द्वारा रचित दो संस्कृत-महाकाव्य-'पार्श्वनाथचरितम्' व 'शान्तिनाथचरितम्' उपलब्ध हैं । हमें अभी तक इन महाकाव्यों के सम्पादित संस्करण की जानकारी नहीं है । जैन साहित्य के इतिहास-ग्रन्थों में इनके विषय में संक्षिप्त विवरण उपलब्ध है, परन्तु इनके सम्पादन व प्रकाशन की सूचना नहीं है। इन काव्यों के प्रकाश में आने से आचार्य माणिक्यचन्द्रसूरि का महाकवित्व विशेष रूप से प्रकट हो सकेगा। काव्यप्रकाश-सङ्केत के प्रकाशित संस्करण
हमारी जानकारी में माणिक्यचन्द्रसूरिकृत 'काव्यप्रकाश-सङ्केत' के अब तक तीन संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं । प्रथम संस्करण आनन्दाश्रम ग्रन्थमाला पूना द्वारा १९२१ ई. में प्रकाशित हुआ था। इसके सम्पादक महामहोपाध्याय वासुदेव शास्त्री अभ्यङ्कर थे । द्वितीय संस्करण प्राच्यविद्या-संशोधनालय मैसूर विश्वविद्यालय मैसूर द्वारा १९२२ ई. में प्रकाशित हुआ था । तीसरा संस्करण भी इसी संस्थानने