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काव्यप्रकाश-सङ्केतकार आचार्य माणिक्यचन्द्रसूरि के
स्वरचित उदाहरण
विजयपाल शास्त्री
संक्षिप्त परिचय
मैं विगत कई वर्षों से काव्यप्रकाश के अध्ययन-अध्यापन के प्रसङ्ग में आचार्य माणिक्यचन्द्र सूरि द्वारा रचित 'काव्यप्रकाश-सङ्केत' का अवलोकन करता रहा हूँ। काव्यप्रकाश को समझने के लिए यह प्राचीन टीका अतीव उपादेय सिद्ध हुई है । इसके अध्ययन से इसके प्रति श्रद्धा बढ़ती गई व अनुभव हुआ कि इसके रचयिता आचार्य माणिक्यचन्द्र एक विलक्षण विद्वान् थे, उनका वैदुष्य वस्तुतः अभिभूत करनेवाला है। 'सङ्केत' टीका का अध्ययन करते हुए पाया कि टीकाकारने अनेक स्थलों पर प्रसङ्गतः स्वरचित उदाहरण भी दिए हैं, जो अतीव उत्कृष्ट कोटि की काव्यकला से समलङ्कृत हैं । इन्हें देखकर इनके सङ्कलन व अनुवाद करने का सङ्कल्प हुआ । इसी का परिणाम यह लेख है ।
मम्मटाचार्य के काव्यप्रकाश का रचनाकाल विक्रम की १२वीं शताब्दी के अन्तर्गत माना जाता है। यद्यपि काव्यप्रकाश पर टीका-साहित्य बहुत विपुल मात्रा में उपलब्ध है, परन्तु काव्यप्रकाश की रचना के कुछ ही वर्षों बाद रचित रुय्यक (रुचक) का 'काव्यप्रकाश-सङ्केत' प्राचीनता की दृष्टि से पहली टीका है । यह टीका अत्यन्त संक्षिप्त है । तदनन्तर सोमेश्वर का काव्यादर्शापरनामधेय 'काव्यप्रकाश-सङ्केत' दूसरी टीका है । इसके उपरान्त माणिक्यचन्द्र का 'काव्यप्रकाश-सङ्केत' रचा गया था, जो कालक्रम की दृष्टि से तीसरे स्थान पर आता है ।
माणिक्यचन्द्र की 'संङ्केत' टीका के आरम्भिक कथन से प्रतीत होता है कि इन्होंने इन पूर्ववर्ती टीकाओं तथा आचार्य हेमचन्द्रादि के ग्रन्थों से बहुत कुछ ग्रहण करके यह टीका बनाई थी। सोमेश्वर के 'संङ्केत' की पर्याप्त सामग्री को यथावत् ग्रहण करने से भी इस बात की पुष्टि होती है । 'सोमेश्वरकृत 'काव्यप्रकाश-सङ्केत' के सम्पादक श्री रसिकलाल छोटालाल परीख ने इसके द्वितीयखण्डगत एक परिशिष्ट (अपेण्डिक्स-ए) में दोनों की समान पंक्तियों का संग्रह किया है । वहाँ उन्होंने सिद्ध किया है कि माणिक्यचन्द्र ने ही अपने से पूर्ववर्ती सोमेश्वर की टीका से सामग्री ग्रहण की है। स्वयं माणिक्यचन्द्र भी टीकारम्भ के द्वितीय श्लोक में अन्य ग्रन्थों में सामग्री लेने के इस तथ्य को बड़ी उदारता से स्पष्ट शब्दों में स्वीकार करते हैं ।