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Vol. XXXII, 2009 अर्जुनरावणीय (रावणार्जुनीय) की टीका व इसके रचयिता हो सका । अर्जुनरावणीय के प्रस्तुत सटीक संस्करण में १४वें सर्ग के ४४वें श्लोक से १८वें सर्ग तक की टीका इसी मातृका के आधार पर सम्पादित की है। इसके उपलब्ध पत्र १५३ हैं । मातृकासंख्याएल. १४२४.
ति ७. (तिरुवनन्तपुरम् ७.)- केरल विश्वविद्यालय तिरुवनन्तपुरम् के कार्यावट्टम्-परिसर स्थित 'प्राच्यविद्या-शोधसंस्थान् एवं हस्तलिखित-ग्रन्थालय' से उपलब्ध मातृका । मलयालम-लिपिबद्ध इस ताडपत्रीय मातृका में अर्जुनरावणीय के १ से ६ सर्ग तक की टीका है । यह टीका पूर्वनिर्दिष्ट मातृकाओं की टीका से सर्वथा भिन्न है । इसमें मूल श्लोकपाठ नहीं हैं, किन्तु श्लोकों के प्रतीक लेकर व्याख्या की गई है। प्रस्तुत सम्पादन कार्य में इस मातृका का बहुत कम उपयोग किया जा सका है। भविष्य में इसका पृथक्शः सम्पादन करने का विचार है । इस मातृका के कुछ आरम्भिक ताडपत्र मध्य-मध्य में कीटभक्षित हैं । मातृका संख्या- १७३२९.
का. (कालिकट)- कालिकट विश्वविद्यालय (केरल) के मलयालम-विभाग के हस्तलेखागार से उपलब्ध मातृका । मलयालम-लिपि में ताडपत्रों पर लिखित यह एक अतीव महत्त्वपूर्ण मातृका है, जो हमें प्राच्यविद्या-शोधसंस्थान केरल विश्वविद्यालय कार्यावट्टम् (तिरुवनन्तपुरम्) के वरिष्ठ हस्तलेखाधिकारी श्री पी. एल. शाजी के मार्गदर्शन से श्रीमान् प्रो० पुरुषोत्तमन् नायर, मलयालमविभागाध्यक्ष, कालिकट विश्वविद्यालय (केरल) से दूरभाष पर सम्पर्क करने ज्ञात हुई थी। इसके बिना यह जानकारी सम्भव नहीं थी, क्योंकि यहाँ के हस्तलेखागार का सूचीपत्र अभी तक अप्रकाशित ही
था।
__ तदनन्तर जून २००२ के आरम्भ में कालिकट विश्वविद्यालय जाने पर श्री नायर महोदय ने बड़ी उदारता व सहृदयता से इसकी प्रतिकृति की व्यवस्था की थी। साथ ही उनके विभाग के वरिष्ठ आचार्य श्री वेणुगोपालन् जी ने इसके वाचन व पाठ-मिलान में अतीव आत्मीयता से सहयोग किया । इससे विदित हुआ कि पूर्व में राजकीय हस्तलेखागार मद्रास से उपलब्ध देवनागरी लिपिबद्ध म. मातृका इसी की प्रतिलिपि है । क्योंकि दोनों के खण्डित स्थल सर्वथा समान हैं । इसमें १९ से २७ सर्ग तक की 'वासुदेवीय-टीका' उपलब्ध है, यह मातृका अर्जुनरावणीय के मूल व टीका भाग के सम्पादन में अतीव महत्त्वपूर्ण आधार रही है। मातृकासंख्या-२६११. (मलयालम-विभाग हस्तलेखागार, कालिकट विश्वविद्यालय केरल)।
म. (मद्रास)- राजकीय प्राच्य हस्तलेखागार (जी. ओ. एम. एल.) मद्रास से उपलब्ध मातृका । यह मातृका कागज पर देवनागरी लिपि में लिखी है । इसमें १९ से २७ सर्ग तक 'वासुदेवीय टीका' उपलब्ध है । अनन्तरकाल में का. मातृका (कालिकट वि. वि. केरल) के मिलने पर विदित हुआ कि यह उसकी प्रतिलिपि है । इसके अन्त में मूल हस्तलेख से प्रतिलिपि करने का दिनांक १०.७.१९१९ लिखा है । पहले इसके आधार पर सम्बन्धित भाग टंकित किया, तदनन्तर मलयालमलिपिबद्ध का. मातृका के साथ राष्ट्रिय-संस्कृत-संस्थान, गुरुवायूर-परिसर त्रिशूर (केरल) में मलयालमलिपि-विशेषज्ञ श्रीमती ललिता चन्द्रन् व श्रीमती विजयलक्ष्मी के वाचन द्वारा इसका प्रत्यक्षर