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________________ 74 विजयपाल शास्त्री SAMBODHI सम्पादन में इन मातृकाओं का संकेत इनके प्राप्तिस्थान के पहले अक्षर से किया है । जैसे कालिकट से प्राप्त मातृका को 'का.' रूप में संकेतित किया है । एक स्थान से प्राप्त एकाधिक मातृकाओं के निर्देश में प्रथमाक्षर के साथ संख्या भी जोड़ दी है । जैसे तिरुवनन्तपुरम् से प्राप्त सात मातृकाओं को ति १., ति २, इत्यादि रूप में संकेतित किया है । कैरलीटीकोपत इस संस्करण के लिए प्रयुक्त मातृकाओं का परिचय इस प्रकार है - ति ४. (तिरुवनन्तपुरम् ४.)- केरल विश्वविद्यालय तिरुवनन्तपुरम् के कार्यावट्टम्- परिसर स्थित 'प्राच्यविद्या-शोधसंस्थान एवं हस्तलिखित-ग्रन्थालय' से उपलब्ध मातृका । यह किसी मलयालम-लिपिबद्ध मातृका की देवनागरी लिपि में कागज पर की गई प्रतिलिपि है । इसमें अर्जुनरावणीय के मूलपाठ के साथ शिवदेशिकशिष्यकृत टीका आरम्भ से १४वें सर्ग के ४३ वें श्लोक क ('तेन रक्त' पाद के आरम्भिक स्थल तक) उपलब्ध है। कई स्थलों की टीका उपरि भाग में लिखित अपने सम्बद्ध श्लोक के पाठ से कुछ भिन्न पाठ पर आधारित है । अतः लगता है, टीका की उपजीव्य व मूलपाठ की उपजीव्य भिन्न-भिन्न दो मातृकाएं थीं, जिनके आधार पर यह प्रतिलिपि तैयार की गई। इस मातृका के लेखन में स्थल-स्थल पर अशुद्धियाँ हैं । इसके शोधन के लिए आगे निर्दिष्ट की जाने वाली उस ताडपत्रीय मलयालयम-लिपिबद्ध ति ५. मातृका का उपयोग किया है, जो आरम्भ से नवम सर्ग के आठवें श्लोक की टीका तक उपलब्ध है। प्रस्तुत ति ४. मातृका में ४५९ पृष्ठ हैं । इसके मुखपृष्ठ पर ग्रन्थ के नाम परिमाण आदि व लिपिकर रामचन्द्र शर्मा के नाम के पश्चात् सबसे नीचे- 'वे. सुब्बरायाचार्यः, १६-७-८८' लिखा है । सम्भवतः यह इसका प्रतिलिपिकाल है, जो १६-७-१८८८ ई. होना चाहिए । मातृकासंख्या-टी. १४२. ति ५. (तिरुवनन्तपुरम् ५.)- केरल विश्वविद्यालय तिरुवनन्तपुरम् के कार्यावट्टम् परिसर स्थित 'प्राच्यविद्या-शोधसंस्थान् एवं हस्तलिखित-ग्रन्थालय' से उपलब्ध मातृका । मलयालम-लिपिबद्ध इस ताडपत्रीय मातृका में अर्जुनरावणीय की मूलश्लोकपाठ-रहित शिवदेशिकशिष्यकृत टीका आरम्भ से नवम सर्ग के अष्टम श्लोक तक उपलब्ध है । इसमें लेखनकाल अंकित नहीं है । विशेषज्ञों के अनुसार यह लगभग २५० वर्ष पुरानी है। पूर्ववर्णित ति ४. मातृका के पाठशोधन में इसका विशेष उपयोग हुआ है। मातृकासंख्या- २०६८५ ति ६. (तिरुवनन्तपुरम् ६.) -केरल विश्वविद्यालय तिरुवनन्तपुरम् के कार्यावट्टम-परिसर स्थित 'प्राच्यविद्या-शोधसंस्थान एवं हस्तलिखित-ग्रन्थालय' से उपलब्ध मातृका । मलयालम-लिपिबद्ध इस ताडपत्रीय मातृका में अर्जुनरावणीय के छठे सर्ग के अन्तिम भाग से २२ वें सर्ग तक की टीका वाक्यभेद के साथ तथा कहीं कहीं थोड़े संक्षेप-विस्तार के साथ यह टीका ति ४. तथा ति ५. मातृका वाली टीका से मिलती है, तथा इसी प्रकार आगे बताई जानेवाली का. (कालिकट) एवं म. (मद्रास) मातृकाओं की टीका से भी मिलती है, जिनमें १९ से २७ सर्ग तक 'वासुदेवीय-टीका' है। ति ६. रूप में संकेतित इस मातृका के बीच में कुछ ताडपत्र लुप्त हो गए हैं । इसके आदि और अन्त में खण्डित होने से पुष्पिका के अभाव में रचयिता का नाम ज्ञात नहीं
SR No.520782
Book TitleSambodhi 2009 Vol 32
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah, K M patel
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages190
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size19 MB
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