SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 76 विजयपाल शास्त्री SAMBODHI मिलान कर पाठशोधन किया गया । टीकाकार शिवदेशिक-शिष्य व वासुदेव प्रथम खण्ड की टीका के रचियता शिवदेशिकशिष्यने टीका आरम्भ करते हुए मङ्गलाचरण के पहले दो श्लोकों में क्रमशः गणेश व सरस्वती की प्राथमिक अनिवार्य स्तुति करने के अनन्तर तृतीय श्लोक में अपने इष्टदेव कृष्ण की स्तुति की है अष्टाभ्यश्शेवधिभ्यस्त्रवदमलमहारत्नसम्पूर्णकुम्भै रष्टाभिस्स्त्रीभिराविर्मनसिजमशनैरादरेणाभिषिक्तम् । इष्टाभिर्गोभिरारादगणितकबलं वीक्षितं स्वर्णवर्णं दिष्टं में स्यादनिष्टप्रकरविहतये कृष्णनामाभिधेयम् ॥ ___ (अर्जुनरावणीयम्, कैरलीटीकोपेम्- पृ० १.) इसके अनन्तर अन्य किसी देवता का स्मरण न कर चतुर्थ श्लोक में कवि ने अपने गुरु को प्रणाम किया है। इससे स्पष्ट है कि टीकाकार कृष्णभक्त हैं। उधर 'वासुदेवीय-टीका' के अन्त में भी टीकाकार वासुदेवने अपने को 'वासुदेवैकमना' कहते हुए कृष्णभक्ति प्रकट की है वासुदेवैकमनसा वासुदेवेन निर्मिताम् । वासुदेवीयटीकां तां वासुदेव्यनुमोदताम् ॥ इससे यह सम्भावना बनती है कि कदाचित् वासुदेव कवि ही शिवदेशिक के शिष्य न हों, और उन्होंने ही पूर्वभाग की टीका भी रची हो, जो उपलब्ध हस्तलेख-ति ४. के चौदहवें सर्ग के मध्य भाग से आगे खण्डित हो गई। एक सम्भावना यह भी है कि व्याकरणोदाहरणप्रधान काव्य 'वासुदेव-विजयम्' के रचियता वासुदेव कवि जो कालिकट के राजा जमूरिन के सभाकवि थे और जिनका काल पन्द्रहवीं से सोलहवीं शताब्दी के मध्य माना जाता है, वे ही 'वासुदेवीय-टीका' के रचियता हों और वे ही प्रथम खण्ड की टीका करने वाले सेव्यशिवदेशिक-शिष्य हों । व्याकरणोदाहरण-प्रदर्शन के क्षेत्र में वासुदेवकर्तृक ये दोनों कार्य रचयिता के अभिन्न होने की सम्भावना प्रकट करते हैं । उक्त सम्भावना की पुष्टि के लिए प्रमाण गवेषणीय है । जब तक प्रामाणिक रूप से इस की पुष्टि नहीं होती तब तक सेव्यशिवदेशिक-शिष्य वासुदेव ही हैं, यह कहना कठिन है । अतः अभी हम प्रथम खण्ड की टीका को 'शिवदेशिकशिष्य-टीका' व तृतीय खण्ड की टीका को 'वासुदेवीयटीका' नाम से व्यवहृत करेंगे । इसी प्रकार इन दोनों के मध्य वाले खण्ड की टीका को 'अज्ञातकर्तृका टीका' नाम से व्यवहृत करेंगे । प्रथम खण्ड की शिवदेशिकशिष्य-टीका व अन्तिम खण्ड की वासुदेवीय टीका के मध्यभाग की पूर्ति के लिए ली गई ति ६.८ मातृकागत टीका छठे सर्ग के अन्तिम भाग से २२वें सर्ग तक
SR No.520782
Book TitleSambodhi 2009 Vol 32
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah, K M patel
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages190
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy