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Vol. XXXI, 2007 गुजरात के चौलुक्य - सोलंकी कालीन अभिलेखों में... पुनरावर्तित नहीं है यही कवि की महत्ता-सिद्धि है ।
___ गणेशर शिलालेख२० में वस्तुपालने गाणउली (गाणगापुर ?) या गणदेवी ? में अपने पुण्योपार्जन हेतु गणेश मण्डप, उस के अग्र भागमें तोरण और प्रतोली द्वार, दुर्ग और प्रपा इत्यादि ईष्टांतपूर्त करवाये। धवलक्कक-धोलका के नजदीक होने से यहाँ वस्तुपाल-सोमेश्वर का वहाँ आना-जाना आसान होगा । श्लोक ५ में "कर्मनिर्मल मतिः सौवस्तिकः शंसति" कर्म और मति से निर्मल पुरोहित सोमेश्वर ही हो सकता है । इसलिये यहाँ भी सोमेश्वर की महत्ता दिखाई देती है । सुदीर्ध पदावली और विविध छंद से विभूषित यह खण्डित शिलालेख वि० सं० १२९१ वैशाख सुद १४ गुरुवार ता० ३ मई, १२३५ की
कविने सिर्फ इस गाँव की, या शत्रुजयादि शिलालेख में सिर्फ इष्टापूर्तों की तत्स्थानीय ही सुकृतों की प्रशस्ति की है। सभी में सभी पराक्रमों या ईष्टापूर्तों की प्रशस्ति नहीं की है। इसलिये कहीं भी पुनरावृत्ति नहीं होती, परंतु आनुपूरक अनुसंधान ही दिखायी देता है यही उसकी बडी महत्ता और सिद्धि
__ वीरधवलने गोगनारायण मंदिर बनवाया था उसकी प्रशस्ति भी सोमेश्वर के पास करवायी थी ऐसी Note मिलती है लेकिन यह उपलब्ध नहीं । प्रबंधों में सोमेश्वर ने १०८ श्लोकों की प्रशस्ति सभा में कही थी । और उसके प्रतिस्पर्धी हरिहर कविने वही श्लोक फिर से कहे थे। हरिहरने कहा 'ये श्लोक उज्जयिनी के सरस्वती मंदिर की दिवार पर है।' लेकिन उसका कोई पता नहीं । लेकिन वि० सं० ११९६१२०३ के दोहद के शिलालेख में सिद्धराजने गोग्गनारायण देवकी पूजा की और दान दिया (गु० ऐ० ले० नं० १४४ क, गु० म० रा० इ० पृ० २६६) । शायद यही मंदिर का वीरवलने जीर्णोद्धार करवाया होगा।
श्री वैद्यनाथप्रासाद जीर्णोद्धार प्रशस्ति या दर्भावती की वीसलदेव प्रासाद जीर्णोद्धार प्रशस्ति२१
गुजरेश्वर वीसलदेव वाघेलाने दर्भावती गाँव की सीममें आया हुआ बैद्यनाथ महादेव के भव्य प्रासाद का जीर्णोद्धार करवाया उसकी स्मृति में सोमेश्वर कविने अलंकृत संस्कृत पद्यात्मक सुदीर्ध प्रशस्ति की रचना की थी। प्राचीन देवनागरी में करीब उनसाठ पंक्ति में ११६ श्लोकों में लिखी हुयी यह दो तक्तीयों में विभाजित रूप में उपलब्ध है। इस जीर्ण शिलालेख का बहुत कम भाग अभी पढ सकने की स्थिति में उपलब्ध है।
अर्बुदादि अन्य प्रशस्तियों में आरंभ में गद्यभाग में दोनों मंत्री, उनका परिवार, राजा का उसके कुल सहित परिचय जैसा यहाँ पद्यांश में नहीं है। लेकिन उनकी अन्यत्र उपलब्ध प्रशस्तियाँ और सु० की० क० इत्यादि साहित्यसे पता चलता है कि अण० पा०, भृगुक्षेत्र, साम्भकपुर, साम्भतीर्थ, धवलक्कक की तरह दर्भावती (डभोई) में भी दोनों मंत्रीने धर्मस्थान, जीर्णोद्धार, प्रासाद निर्माणादि करवाये थे। हमें दर्भवती के संदर्भ में विशेष२२नोंध "श्री वैद्यनाथवरवेश्मनि दर्भावत्यां, यान् दुर्भदी सुभटवर्म नृपो जहार ।२२ तान विंशति द्युतिमतस्तपनीय कुम्भानारोपयत् प्रभुदितो हृदि वस्तुपालः ।" यही बात वस्तुपाल के गुरु