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विभूति वि० भट्ट
SAMBODHI
की तरह गिरनार के सभी (छ) शिलालेखो का आरंभिक गद्यभाग समान बातें बताते हैं । सभी गद्यांश के आरंभ में मंगलाचरण का एक श्लोक है। उनके कर्तृत्व के लिये कुछ कहना मुश्किल है। वो शिलालेख देवनागरी लिपि में सुवाच्य और अखंड स्वरूप में सुरक्षित है। प्रथम शिलालेखो में से कुछ श्लोक सोमेश्वर की अन्य कृतियों में या प्रबन्धों में दिखाइ देते हैं लेकिन तृतीय शिलालेखो में आया हुआ कोइ श्लोक सोमेश्वरकी अपनी कृति या प्रबन्धो में खास करके नहीं दिखाइ दिये । और मंगलाचरण के कोई श्लोक भी अन्यत्र नहीं मिले हैं।
शिलालेख-१, श्लोक-७ में 'लवणप्रसाद पुत्र श्री करणे लवणसिंह जनकोऽसौ ।' में 'लवण' का यमक है वैसे यमकानुप्रास लगभग सभी श्लोकों में हैं । इस शिलालेखो में वस्तुपाल का उसकी पत्नी ललितादेवी और पुत्र जयंतसिंह का एवं लघु भ्राता तेजपाल का प्रशंसायुक्त उल्लेख है। तीसरे में तेजपाल का और विशेषरूप में वस्तुपाल की गरीबों के अश्रु पोछनेवाला, उदार दानवीर, धार्मिक इत्यादि गुणों की प्रशंसा सोमेश्वरने की है क्योंकि दोनो प्रासादों का निर्माता मंत्री वस्तुपाल है। यहाँ सोमेश्वरने मंत्रीओं की तत्कालीन वर्तमान उच्च परिस्थिति का निरूपण किया है। उन श्लोकों की पसंदगी इन जैन शिलालेख में हुइ वही कवि की महत्ता है ।
इस गिरनार के प्रथम शिलालेख में सोमेश्वरने सर्वप्रथम लवणप्रसाद को सर्वेश्वर पद धारक और वीरधवल को युवराज कहा है१७ यह सोमेश्वरकी महत्त्वपूर्ण विगत देनेवाली बात हुइ है। लवणप्रसाद के पुत्र वीरधवल के समयमें लवणसिंह (लावण्यसिंह) और उसके चाचा तेजपाल मंत्री स्तंभतीर्थ में मुद्राव्यापार करते थे उस समय में वस्तुपाल के उदार-दानी इत्यादि गुणसंकीर्तन किया गया है और सबसे महत्त्व की बात सोमेश्वरने की है कि मंत्री वस्तुपालने सिंधुदेश के किनारे हाथी और अश्वों का समूह जीतकर अपने स्वामी वीरधवल को समर्पित किया था ।१८ इसका समर्थन सोमेश्वररचित आ० प्र० में भी मिलता है। यह सोमेश्वरने सर्वप्रथम कही । यही कवि की महत्ता है । शि० ले० १, श्लो० -८ में वस्तुपालमें शिव की अष्टमूर्ति की भावना सोमेश्वरने कैसे प्रकट की है यह वैद्यनाथ प्रासादप्रशस्ति के आरम्भिक श्लोकों के संदर्भ में समजी जाती है । इस शिलालेख १ में ९ श्लोकों में ५ प्रकार के छंदों का और शिलालेख ३ में १६ श्लोंकों में ७ प्रकार के छंदों का प्रयोग किया गया है ।१९ इसमें कवि का सुदीर्ध छंदःप्रयोग करने की अभिरुचि और कुशलता का परिचय ध्यान में आये बिना नहीं रहता ।
शिलालेख नं० १, श्लोक ६ = आ० प्र० श्लोक-४७ शिलालेख नं० १, श्लोक ७ = प्र० ले० ३, श्लोक-४९ शिलालेख नं० १, श्लोक ९ = आ० प्र० श्लोक-४४
शिलालेख नं० ४, सु० उ० सर्ग १५, श्लोक० १७ में समान भाव की० कौ० ३।३६ में भी हमें मिलता है।
शिलालेख-३, श्लोक- ९ में सोमेश्वरने अपने को सांत्वन देते हुए कहते हैं कि वस्तुपाल जब तक अस्तित्व में है तब तक घरमें खर्च की चिंता क्यों करनी? इन दोनों शिलालेख में कोई बात या श्लोक