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Vol. XXXI, 2007
गुजरात के चौलुक्य सोलंकी कालीन अभिलेखों में...
३ श्लो० ५३ तेन भ्रातृयुगेन या... श्लो० ११ = आबू की तेजपाल प्रशस्ति, श्लो० ६६ एवं व०
प्र० ले० ३
श्लो० ५३,
४ सोमेश्वर कृत क्षोणीपीठर्मियद्रजः कण - श्लो० १२ ५ यार्वाद्दन्दुवदुनार्को... श्लो०१३ = व० प्र० ल० ३, श्लो० ५४.
६ एतामलिखत् वाजडतनु- श्लो० १४ = आ० प्र० श्लो० ५६.
इसके उपरांत अन्य समकालीन कवि के श्लोक के कर्ता समज सकते हैं । १४
=
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शि० ले०२ गद्यपद्यात्मक है । यहाँ बीच बीच में गद्यभाग के बाद श्लोकांक १ से लिखा गया है । अनुसंधान की सुविधा के खातिर पहला मंगलाचरण का श्लो०१ ही है लेकिन बाद में श्लोकानुं संख्या अनुसंधान में ही आगे चालु रखी गई है। इसमें कुल १३ श्लोक में से सोमेश्वर कृत करीब ६ श्लोक उद्धृत किये गये हैं :
:
(१) १ (पू) लावण्यांग - शिशुरपि = व० प्र० ले० ३, श्लो - ५०, प्रबन्ध कोष, श्लो - २५, पृ० ४१, २३८, पृ० १०१, (२) १ (७) अय में फलवती पितुराशा = व० प्र० ले० ३, श्लो० ५४, जैन प्रबन्धों में भी । (३) ४ (१०) यः शैशवेविनय - ० (श्लो०१०) = आ० प्र० श्लो० ४५, (४) ६ (१२) श्री बन्धनोद्धुरतरैरपि ( श्लो० १२) = आ० प्र० श्लो० ४६, (५) ७ (१३) प्रसादादादिनाथस्य = व० प्र० लेखांक - ३, श्लो० १८, आ० प्र० श्लो० ७४, (६) ८ (१४) पंक्ति - २० = आ० प्र० श्लो० ५६, परंतु इस द्वितीय शि० ले० की पंक्ति में मिति वर्ष नहीं है ।
इस द्वितीय शि० ले० में भी अन्य कवियों के ४ श्लोक मिलते हैं ।
मङ्गलाचरण का पूर्वार्ध देवः स वः...... श्री उदयप्रभसूरि, उपदेशमाला कर्णिका श्लो० २ का पूर्वार्ध, सुकीक० पृ० ७८ इत्यादि १५ ।
इसका श्लो० ५, ७ और ८ अनुक्रम में नरेन्द्रप्रभसूरि, व०प्र० ले० १, श्लो० ३६, २१ और श्लो० २२ है ।
इस तरह वि० सं० १२८८ के ये दोनों शि० ले० में अन्य समकालीन जैन कवियों के श्लोकों भी सोमेश्वर के श्लोकों की तरह उद्धृत होने से यहाँ ब्राह्मण कवि की महत्ता, प्रसिद्धि और लोकप्रियता सिद्ध करते हैं ।
उज्जयन्त- गिरनार - रैवतक पर्वत पर वस्तुपाल मंत्रीने संमेतमहातीर्थावतार एवं अष्टापद महातीर्थावतार प्रासादादि बीस तीर्थंकरो से अलंकृत नये मंडपादि करवाये । इसके उपलक्षमें १० शिलालेख हैं । इन में से नं १, ५ और ६ संमेतमहातीर्थावतार प्रासाद के बारे में और नं० २, ३ और ४ अष्टापदमहातीर्थावतार प्रासाद के बारे में है। सोमेश्वरने ये दोनों महातीर्थों के बारे में कुछ लिखा हो यह निश्चित नहीं कह सकते, लेकिन इन छे शिलालेखो में से उपरोक्त दोनों महातीर्थावतार के आरंभ का गद्य भाग के बाद पहले शिलालेख के ९ श्लोक और तीसरे शिलालेखो में १६ श्लोक सोमेश्वरदेव रचित है । १६ शत्रुञ्चय शिलालेखो