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________________ 76 अनिल गुप्ता SAMBODHI संगीत और कविता श्रव्य और चित्र दृश्य कला है। श्रव्य को दृश्य करने का प्रयास रागमाला चित्रों में हुआ है। जहाँ शब्द रूक जाते हैं चित्र कि भाषा वहीं से प्रारम्भ हो जाती है। दोनों का उद्देश्य - अभिव्यक्ति रहा है। संगीत में राग रागिनियों का स्वरूप मध्यकाल में ही निश्चित हो पाया । अतः इससे पूर्व राग माला चित्रों के निर्माण की कल्पना नहीं की जा सकती । रागमाला चित्र परम्परा में प्रेम के संयोग और वियोग दोनों पक्ष है, रस है, भाव है, उस स्वर विशेष का रूप है। रागमाला चित्रों के सम्बन्ध में कई भ्रान्तियाँ है । कई बार स्वयं संगीतकार किसी चित्र में प्रयुक्त प्रतीकों को गलत मानते हैं । एक ही राग अलग-अलग शैली में अलग-अलग प्रतीकों द्वारा भी चित्रित हुआ है। शैलीगत विभिन्नता को तो स्थानीय प्रभाव के कारण स्वीकारा जा सकता है पर प्रतीकों का परिवर्तन तो उस राग रागिनी विशेष का स्वरूप ही बदल देगा। 1: निश्चित रूप से यह गलत है। इसका कारण जानने का प्रयास किया जाये तो अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि संगीत व कला के क्षेत्र भिन्न-भिन्न है । संगीत शास्त्र की स्थापना करनेवाले मनीषि संगीतकार रहे हैं पर चित्र निर्माण करने का कार्य चित्रकारों का था । चित्रकार के सामने आधार पहले से ही निश्चित था उसका काम उन आधारों पर संयोजन तैयार करना था जो उसने दक्षता से कर दिया । पर जब प्रतीक आदि ही विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग हो तो निश्चत रूप से चित्रकार का इसमें कोई दोष नहीं है। विभिन्न मतों से राग-रागनियों के अनेक भिन्न-भिन्न वर्गीकरण मिलते हैं । यद्यपि इन वर्गीकरणों में राग-रागनियों में कुछ अन्तर अवश्य प्रतीत होता है परंतु रागों का पुरुषोचित मर्दानापन और वीरता तथा रागिनियों में स्त्रियोंचित कोमलता, मार्दवता इत्यादि आरोपित की गई है इससे इनका सौन्दर्य वृद्धिगत हुआ है । एक कुटुम्ब का आभास हमें इन वर्गीकरण में मिलता है । शायद इसी कारण से इन्हीं राग-रागिनियों की रागमाला बनाई गई । मुख्यतः प्रमुख राग छः प्रकार के हैं जो छः मौसमों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन प्रमुख रागों की पाँच-पाँच स्त्रियों हैं (जो निम्न रागों का प्रतिनिधित्व करती हैं) अतएव रागिनियों की कुल संख्या तीस है । इसके अलावा कुछ अन्य लघु राग हैं जिन्हें उन रागों का पुत्र कहा जाता है । चित्रों का मूल उद्देश्य वातावरण व भावनाओं के अनुरूप लिया जाता था, जो उस राग या रागिनी द्वारा उद्वेलित किया जाता था । उदाहरणार्थ प्रेम भावना का राधा कृष्ण के चित्रों द्वारा प्रदर्शित किया जाना । अत: कई बार राधा व कृष्ण को नायक व नायिका के रूप में भी वर्णित किया जाता है । भारत के मतानुसार राग का वर्गीकरण : राग रागिनी १. भैरव- १. मधुमाधवी, २. ललिता, ३. बरारी, ४. भैरवी, ५. बहुली २. मालकौस- १. गुजरी, २. विधावती, ३. तोड़ी, ४. खम्भावती, ५. कुकुभ
SR No.520781
Book TitleSambodhi 2007 Vol 31
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages168
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size21 MB
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