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________________ शेखावाटी में रागमाला चित्रण अनिल गुप्ता काव्य में जहाँ 'राग' शब्द का अर्थ 'प्रीति', 'अनुराग' आदि से होता है। वहीं संगीत में राग से तात्पर्य "स्वरों की विशिष्ट रचना" से है, जिसके द्वारा विभिन्न रसों के विशिष्ट भावों का प्रकाशन किया जाता है। संगीत के क्षेत्र में जिस-चित्त-रंजक-ध्वनि की प्रतिष्ठा है, उस ध्वनि विशेष के वाचक 'राग' शब्द का उद्गम 'रंज्' धातु से हुआ है। पाणिनीय व्याकरण में दो स्थलों पर 'रंजरागे' रंगने के अर्थ में 'रंज्' धातु से प्रयोग बताया गया । इसी रंज् धातु में धञ् प्रत्यय जुड़कर 'राग' संज्ञा बनता है जिसका अर्थ रंग है । संगीत का राग हमें अपने रंग में रंग लेता है। प्रेमी और प्रेमास्पद का 'राग' या 'अनुराग' भी यही कार्य करता है। रागों का चित्रण : कला सौन्दर्य-विधान सबसे पहले कलाकार के हृदय में होता है, वह बाह्य सौन्दर्य से अनुभूत होता है, तत्पश्चात् संरचना की भूमिका से उसी सौन्दर्य आस्वादक के हृदय में प्रवेश पाता है। अत:कला सौन्दर्य बाह्यजगत से उठकर कलाकार के मानस से होते हुए आस्वादक के मानस तक प्रवेश पाता है और कुल मिलाकर यहाँ से वहाँ तक अपना एक क्षेत्र निरूपित करता है जिसमें उसकी एक अखण्ड सत्ता होती है। कला सौन्दर्य के सम्बन्ध में विश्व कवि रवीन्द्र नाथ टैगोर ने कहा है - "जो सत् है, जो सुन्दर है, वही कला है। सृष्टि में चारों ओर एक चिर सौन्दर्य परिलक्षित हो रहा है, एक चिरन्तन सत्य का आभास मिल रहा है, इसी का व्यक्तीकरण, इसी को कल्पना के उन्मुक्त पंखो द्वारा चारों और प्रकट कर देना ही कला है । कला स्वयं सौन्दर्य की प्रेरणा से प्रकट होती है । कलाकार के भीतर अस्फुट रूप से विद्यमान सौन्दर्यभास ही मूर्ति होकर कलागत सौन्दर्य कहलाता है। अर्थात् सभी कलाओं का मूल सौन्दर्य, भाव और रस है । कलाकार के अनुसार माध्यम बदल जाता है। संगीत स्वर के माध्यम से सौन्दर्य, रस और भावाभिव्यक्ति करता है । कविता शब्दों के माध्यम से यह अभिव्यक्ति करती है तो चित्रकार इसी अभिव्यक्ति के लिए रंग-रेखाओं को माध्यम बनाता है ।
SR No.520781
Book TitleSambodhi 2007 Vol 31
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages168
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size21 MB
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