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________________ 88 वसन्तकुमार भट्ट SAMBODHI यहाँ पर वल्लभदेव ने 'शुचौ' शब्द का अर्थ "आषाढ़ मास" किया है। दूसरी ओर मल्लिनाथ ने उसका अर्थ "ग्रीष्म ऋतु में" ऐसा किया है। वास्तव में 'शुचि' शब्द का अर्थ देने में दोनों टीकाकार सही हैं । क्योंकि अमरकोष की रामाश्रमी टीका में लिखा है कि शुचिग्रीष्माग्निशृङ्गारेष्वाषाढ़े शुद्धमन्त्रिणि । ज्येष्ठे च पुंसि धवले शुद्धेऽनुपहते त्रिषु ॥ यहाँ पर 'शुचि' शब्द के अनेक अर्थों का संकलन कर दिया गया है। इसको देखते हुए 'शुचि' शब्द का जो अर्थ वल्लभदेव ने दिया है और मल्लिनाथ ने दिया है, वह दोनों सही हैं । परन्तु वल्लभदेव स्वयं जब अपनी टीका में लिखते हैं कि इस श्लोक (५-२०) में पार्वती की पञ्चाग्नितपः साधना का कथन है, तो सन्दर्भ की दृष्टि से तो यहाँ 'ग्रीष्म ऋतु' ऐसा ही अर्थ लेना चाहिए। यदि 'आषाढ़मास' ऐसा अर्थ लिया जायेगा तो, वह समय तो वर्षाऋतु का है। स्वयं कालिदास ने ही लिखा है कि आषाढस्य प्रथमदिवसे मेघमाश्लिष्टसार्नु । वप्रक्रीडापरिणतगजप्रेक्षणीयं ददर्श ॥ (-मेघदूतम्-२) अत: पार्वती ने जो अपने चारों ओर अग्निप्रज्वलित किया है, वह आषाढ़ मास में नहीं, ग्रीष्मऋतु में किया है । आषाढ़ में तो बादलों से सूर्य भी आच्छादित हो जाता है, अत: पञ्चाग्नि साधना आषाढ़ में कैसे सिद्ध होगी । इसी को 'दुर्व्याख्या' कही जायेगी। उपर्युक्त एक ही उदाहरण से देखा जा सकता है कि, केवल एक शब्द का यदि 'सान्दर्भिक अर्थ क्या हो सकता है ?' इसका विचार नहीं किया जाता है तो काव्य को कितनी बड़ी हानि हो सकती है। 'शुचौ' शब्द का अर्थ 'ग्रीष्मऋतु" न करके, 'आषाढ़े मासि' किया जायेगा तो पार्वती की उग्र तपश्चर्या का वर्णन एकदम शिथिल हो जायेगा । आगे चलकर, पार्वती की परीक्षा लेने के बाद भगवान् शङ्कर प्रसन्न होते है और कहते है कि- अद्यप्रभृत्यनवमाङ्गि (अद्यप्रभृत्यवनताङ्गि) तवास्मि दासः । क्रीतस्तपोभिरिति वादिनि चन्द्रमौलौ ॥ (कु० ५-८६) यहाँ पर पार्वती के जिस उग्र तपश्चरण से शङ्कर अपने को खरीदा गया 'दास' बताते हैं, वहाँ पञ्चाग्नि साधना का तपश्चरण आषाढ़ में नहीं, ग्रीष्म ऋतु में ही किया गया होना चाहिए ॥ इस बात को ध्यान में लेकर मल्लिनाथ कहते हैं कि - "भारती कालिदासस्य दुर्व्याख्याविषमूर्छिता।" और इसी लिए मल्लिनाथ को 'सञ्जीविनी' टीका लिखने की आवश्यकता दिखाई पड़ी है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520778
Book TitleSambodhi 2005 Vol 28
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, K M Patel
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages188
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size4 MB
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