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________________ Vol. XXVIII, 2005 इतिहास के परिप्रेक्ष्य में भगवान बुद्ध का व्यक्तित्व 79 में सम्भव नहीं थी। हालांकि बौद्ध धर्म का यह सामाजिक विस्तार दो कारणों से सम्भव हुआ था। प्रथम कारण के जनक स्वयं बुद्ध थे जब उन्होंने संघों की स्थापना कर बौद्ध भिक्षुओं के लिए भिक्षाटन और धर्म प्रचार का दायित्व सौंपकर इस धर्म को व्यापक सामाजिक आधार प्रदान करने का कार्य किया । यह बौद्ध संघ कालान्तर में समाज के उन वर्गों के लिए शिक्षा का भी आधार बने जो अब तक ब्राह्मण व्यवस्था के कारण शिक्षा से वंचित थे। दूसरे गौतम बुद्ध ने स्त्रियों को भिक्षुणी बनने का अधिकार देकर स्त्रियों के सामाजिक स्तर को गरिमा प्रदान की जो ब्राह्मण व्यवस्था में सीमित होती जा रही थी (थापर, रोमिला, २००२ पृ. ६६-६७) । बौद्ध धर्म को दूसरा सामाजिक आधार सम्राट अशोक ने प्रदान किया जब उसने अपने धर्म की नीति के अंतर्गत तथागत के उपदेशों को उत्कीर्ण कराया तथा बौद्ध धर्म के व्यापक प्रसार के लिए उसने महेन्द्र व संघमित्रा को भेजकर बौद्ध धर्म को भारत की राजनीतिक सीमाओं से बाहर पहुँचाने का मार्ग प्रशस्त किया। मौर्यकाल से शुंग, सातवाहन तथा शकों के आगमन तक बुद्ध प्रतीकों के माध्यम से पूजे जाते थे। इसका कारण बुद्ध के मध्यममार्गी सिद्धान्तों का सरल होने के अलावा यह भी था कि इसका पूर्ववर्त वैदिक धर्म यज्ञ के अलावा ऐसा कोई माध्यम नहीं खोज सका था जो सर्वलोकप्रिय हो सके जबकि बुद्ध ने स्तूप और वृक्ष पूजा को स्वीकार करके तत्कालीन लोक आस्थाओं से सम्बद्ध कर लिया था । ... बुद्ध और बौद्ध धर्म के विस्तार का दूसरा चरण कुषाण शासक कनिष्क द्वारा महायान धर्म की स्थापना से प्रारम्भ होता है । कनिष्क से पूर्व बौद्ध धर्म तिब्बत, लइदाख, खोतन तक विस्तार पा चुका था लेकिन कनिष्क ने सत्ता ग्रहण कर कश्मीर, जहाँ पूर्व में ही सम्राट अशोक बौद्ध धर्म को विस्तार प्रदान कर चुके थे, में चतुर्थ संगीती आयोजित कर बौद्ध धर्म के मार्ग को प्रशस्त किया । अब बौद्ध धर्म उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में विस्तार पाकर काफी लचीला हो गया था क्योंकि इस क्षेत्र में अनेक विदेशी जाति समूहों का वर्चस्व था जिसमें एक मिश्रित सामाजिक व्यवस्था थी । इस भूभाग में इन विभिन्न सामाजिक समूहों (जिनमें ग्रीको - रोमन, ईरानी प्रमुख थे) को बौद्ध धर्म ने अत्यधिक प्रभावित किया जिसकी अन्तिम परिणति महायान की स्थापना के रूप में हुई । वास्तविकता में महायान धर्म ने बुद्ध के करुणा भाव से प्रेरणा प्राप्त की थी। इसका उद्देश्य व सोच अधिक व्यापक था तथा इसकी आकांक्षा अधिक उदात्त थी। महायान बोधिसत्व के आदर्श को लेकर स्थापित हुआ था जिसके अनुसार प्रत्येक मानव में बुद्ध होने की सम्भावना व्याप्त है तथा सभी बुद्धत्व प्राप्त कर सकते हैं और उन्हें इसकी आकांक्षा करनी चाहिए। अर्थात् महायान की आकांक्षा सार्वभौमिक है क्योंकि इसका उद्देश्य सार्वभौमिक मुक्ति से है (जोशी, लालमणि, १९६७, पृ. ११७-११८) इसकी पुष्टि भिक्षु संघरक्षिता के इस विचार से भी होती है कि महायान सबके निर्वाण की शिक्षा प्रदान करता है (ए. बाशम, ए. एल. १९९८ पृ. ९३)। ___ इस तरह से समय के प्रवाह के साथ तात्कलिक आवश्यकताओं के अनुरूप बौद्ध धर्म परिवर्तित होता गया तथा बुद्ध स्वयं एक आख्यान बन गए । तीसरी शताब्दी ई. के प्रारम्भ तक बुद्ध व्यापक स्तर पर बुद्ध प्रतिमा के साथ साथ बोधितत्व और उनकी पत्नी के साथ दोनों की पूजा अर्चना प्रारम्भ हो गई। ऐसी प्रतिमाओं का अंकन विशेषतः गान्धार कला में देखने को मिलता है । गान्धार कला के अलावा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520778
Book TitleSambodhi 2005 Vol 28
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, K M Patel
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages188
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size4 MB
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