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________________ Vol. XXVIII, 2005 स्मृतियों में स्त्री-धन 65 करने के लिए स्वतन्त्र थी। वह अपनी इच्छानुसार इस धन को काम में ले सकती थी, विक्रय या दान कर सकती थी अथवा इस धन को अपने कल पर व्यय कर सकती थी ।१९ स्त्री-धन पर पति का आंशिक अधिकार स्मृतियाँ हमें यह ज्ञान दिलाती हैं कि स्त्री-धन पर केवल स्त्रियों का ही अधिकार होता था । तथा किन्हीं विशेष परिस्थितियों में ही पति द्वारा इस धन का उपयोग किया जा सकता था । स्मृतियाँ केवल विशेष स्थिति में ही पति द्वारा इस धन के उपयोग की अनुमति देती थी। इसका प्रयोग पति केवल दुर्भिक्ष, धर्मकार्य, व्याधि एवं बन्दी बनाए जाते पर कर सकता था और पति को इस धन को लौटाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता था। याज्ञवल्क्य और विष्णु के मतानुसार पति के ऋण पत्नी को नहीं बांध सकते थे और न ही पत्नी के ऋण पति को अर्थात् पति पत्नी एक दूसरे के ऋण के लिए उत्तरदायी नहीं थे ।२१ मनु स्मृति से हमें यह पता चलता है कि यदि पति, पुत्र, भाई जबरदस्ती सम्पत्ति छीन ले तो उसको ब्याज के साथ लौटाना पड़ता था नहीं तो राजा उनको दण्ड देता था ।२२ नारदस्मृति में स्त्री को केवल चल सम्पत्ति ही बेचने की अनुमति देती है ।२३ प्रायः स्मृतिकारों ने स्त्री-धन के पुरुषों द्वारा उपयोग पर प्रतिबंध लगाया हुआ था । केवल विशेष परिस्थितियों में ही पति को इस धन का उपयोग करने की अनुमति थी। स्त्री-धन के सही उत्तराधिकारी । मनु स्मृति के अनुसार स्त्री की ममता साधारणतः पुत्री के प्रति होती है इसलिए स्त्री-धन की उत्तराधिकारणी पुत्री है ।२५ गौतम के अनुसार स्त्री-धन पहले अविवाहित पुत्री को फिर निर्धन विवाहित पुत्री को बाद में धनी विवाहित पुत्री को देना चाहिए ।२५ मनु के मतानुसार स्त्री-धन माँ की मृत्यु के पश्चात् विशेष स्थिति में भाई और बहन में बराबर-बराबर बाँट देना चाहिये और उसका कुछ भाग नातिन को भी देना चाहिये । यदि पत्नी पति के रहते स्वर्ग सिधार जाए तो उस स्थिति में उसका अन्वाधेय स्त्री-धन (पति कुंलं से प्राप्त धन) प्रति प्रदत्त आदि धन उसकी पत्रियाँ ही प्राप्त करती है, पति का उस धन पर कोई अधिकार नहीं है ।२६ स्मृतिकार का कथन है कि केवल पुत्री को ही स्त्री-धन पाने का अधिकार है क्योंकि पति का शुक्र अधिक होने से पुमान (पुरुष) उत्पन्न होता है और स्त्री का रज अधिक होने पर पुत्री पैदा होती है । पाराशरस्मृति के अनुसार स्त्री-धन पुत्रियों को ही मिलना चाहिए पुत्र एवं पति का इस धन पर कोई अधिकार नहीं है ।२८ मनु के मतानुसार यदि स्त्री का विवाह ब्राह्म, देव, आर्य, गान्धर्व य प्राजापत्य विधि से हुआ हो और वह नारी सन्तानहीन मृत्यु को प्राप्त हो जाती है तो उस परिस्थिति में उसका पति वह धन प्राप्त कर सकता है। यदि स्त्री का विवाह आसुर, राक्षस और पैशाच विधि से हुआ हो तो उस स्थिति में सन्तानहीन स्त्री का धन माता-पिता पाते है ।२९ वर्तमान युग में भी कई बार ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं जिसके कारण समाज में झगड़े एवं कई सामाजिक बुराईयाँ जन्म लेती अतः हमें स्मृतियों के अध्ययन से पता चलता है कि स्मृतियुग में स्त्रियों की गणना द्वितीय श्रेणी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520778
Book TitleSambodhi 2005 Vol 28
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, K M Patel
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages188
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size4 MB
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