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जी. सी. चौहान
के नागरिकों के रूप में थी। स्मृतिकारों ने कन्याओं, स्त्रियों और विधवाओं के आर्थिक संरक्षण पर बल दिया था । प्राचीन भारतीय समाज में स्त्री-धन का उल्लेख स्त्रियों का सामाजिक एवं आर्थिक दशा पर प्रकाश डालता है। स्मृतिकारों के कथनों के विश्लेषण से हमें यह पता चलता है कि स्मृतिकारों में आपस में भी स्त्री-धन को लेकर मतभेद थे जिसके कारण उनके दो वर्ग बन गए, एक उदार और दूसरा अनुदार । वर्तमान युग में भी विद्वानों में स्त्री के सम्पत्ति पर अधिकार को लेकर मतभेद पाए गए हैं। आज भी समाज में स्त्रियों के विपत्ति काल में जब सारे सगे-सम्बन्धी किनारा कर लेते हैं तब उनके जीवन का संचालन उसके स्त्री-धन से ही हो सकता है । प्रायः वर्तमान युग में भी यह देखने को मिलता है कि पति और पिता की मृत्यु के पश्चात् नारी का जीवनयापन कठिन हो जाता है। आज स्त्री- धन का हमारे समाज में एक दूसरा पहलू भी है। स्त्रियों द्वारा विवाह में लाया गया धन और सम्पत्ति पतियों के द्वारा अधिकृत है । पति और पतिकुल उस धन और सम्पत्ति को अपने अधिकार में ले लेते हैं जिसे दहेज की संज्ञा भी दी जाती है। इस कारण हमारे समाज में कई बुराईयाँ जन्म ले रही हैं। ऐसे पति व पतिकुल स्मृतिकारों द्वारा स्त्रियों का स्त्री-धन पर स्वीकारे गए अधिकार को नजर अन्दाज कर देते हैं। हम अपने आप को कितना भी सभ्य या शिक्षित मान लें किन्तु हमारी सोच नहीं बदली है । अतः हमें नारी के सम्पत्ति के अधिकार को अत्यन्त सहजभाव से स्वीकार करना चाहिये ।
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सन्दर्भ सूचि :
१. मनुस्मृति, (सम्पादक) अनुवाद हरिगोविन्द शास्त्री, वाराणसी, १९८९
२. मनुस्मृति, मेधातिथि भाष्य, मनसुख राय मोर, कलकत्ता, १९७०
मनुस्मृति कुल्लूक भट्ट की टीका सहित, बम्बई, १९९६, ९.२६
३. ऋग्वेद सामाज भाष्य सहित, सम्पादक, विश्वबन्धु, होशियारपुर, १९६०
ऋग्वेद (अंग्रेजी अनुवाद) एच. एच. विल्सन, दिल्ली, १९७७ भाग-१, १२.४७.७.४.८ वही, २..१७.७
४. याज्ञवल्क्य स्मृति, मिताक्षरा सहित, उमेश चन्द्र पाण्डेय, वाराणसी, १९६७
याज्ञवल्क्य स्मृति, महिर चन्द्र विमराज, बम्बई, १८७ याज्ञ, २.११५.
याज्ञवल्क्य २.११५
बृहस्पति स्मृति (अनुवाद मैक्स मलूर, सेक्रेड बुकस ऑफ दी ईस्ट, दिल्ली, भाग, ३३, सम्पादन, जे. जे. जौली बृह,
२६.२२-२५.
५. अर्थशास्त्र अनुवादक आर. श्यामाशास्त्री, मैसूर, १९२९
अर्थ, ३.५, द्रव्यम पुत्रस्य सोदर्या भ्रातरः सहजीविनो वा हरेयुः कन्याश्च ।
६. याज्ञ. २.१३५
७. वही. २.१३६
८. मनुस्मृति, ९.१९४, अध्यग्न्यध्यावानिक दंत च प्रति कर्माण । भ्रातृ पितृ प्राप्तं षड़विधं स्त्रीधनमं स्मृतम ।
९. वही, १ ९४३ - ४४
SAMBODHI
१०. याज्ञ. २.१४३-४४
११. विष्णु स्मृति, सम्पादक, जे. जे. जौली, कलकत्ता, १८८१, अनुवादक मैक्स मूलर, सेक्रेड, बुकस ऑफ दी ईस्ट, भाग
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