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स्मृतियों में स्त्री-धन
जी. सी. चौहान
भारतीय स्त्रियों के आर्थिक एवं सामाजिक जीवन का जितना सुन्दर विवेचन हमें स्मृतियों में मिलता है, उतना अन्य किसी साहित्यक रचना में नहीं मिलता । आर्थिक दृष्टि से स्मृतियों में स्त्रियों की सम्पति (स्त्री-धन) का विषय अत्यन्त महत्वपूर्ण है अतः मैंने उसे ही अपने इस शोधपत्र का विषय बनाया है। मैं इस शोध पत्र में यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि प्राचीन भारतीय समाज में स्त्रियों का सम्पति पर क्या अधिकार था (विशेष रूप से स्मृति युग में स्त्री-धन) । स्त्री-धन का स्मृति युग में क्या महत्व रहा होगा। क्या वर्तमान सामाजिक ढांचे में धन का स्थान और महत्व है ? मैं इस शोध पत्र में केवल स्मृतियुग में स्त्री-धन पर चर्चा करूंगा । वैदिक युग का भारत स्त्रियों को बहुत ही सम्मान की दृष्टि से देखता था और उन्हें सम्पत्ति का अधिकार प्राप्त था। भारतीय समाज में स्त्रियों के द्वारा कन्या, पत्नी, वधू और माँ के रूप में किए जानेवाले योगदान का सर्वदा महत्व और गौरव रहा है । स्मृतियों में स्त्री सर्व-शक्तिसम्पन्न मानी जाती थी तथा विद्या, शील, ममता, यश और सम्पत्ति की प्रतीक समझी जाती थी। स्मृतिकारों का मत है कि केवल पुरुष कुछ नहीं है, अर्थात् वह अपूर्ण ही रहता है, किन्तु स्त्री, स्नेह एवं सन्तान ये तीनों मिलकर ही पुरुष (पूर्ण) है और जो पति है वही स्त्री है । अतएव उस स्त्री से सन्तान उस स्त्री के पति की होती है जो पुरुष को पूर्ण बनाती है।
-स्त्रीयों की दशा में युग के अनुरूप परिवर्तन होता रहा है । उसकी स्थिति में वैदिक युग से वर्तमानकाल तक अनेक उतार-चढ़ाव आते रहे हैं तथा उसके अधिकारों में परिवर्तन होते रहे हैं। पुरुषों की तुलना में स्त्रियों को भारतीय समाज में श्रेयस्कर स्थान नहीं मिला बल्कि अपेक्षाकृत निम्न स्थान ही प्राप्त होता रहा है जिसके प्रमुख कारण राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक एवं मानसिक संकीर्णता ही थे। स्त्रियों की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर स्मृतिकारों ने उनका सम्पत्ति-विषयक अधिकार स्वीकार किया है तथा उनकी विशेष परिस्थितियों का भी विश्लेषण किया है । वैदिक काल में भी स्त्रियों का सम्पत्ति पर अधिकार किसी भी प्रकार से पुरुषों से कम नहीं समझा जाता था और भ्राता रहित पुत्री एवं स्त्री अपने पिता की सम्पत्ति की अकेली उत्तराधिकारिणी मानी जाती थी। यहाँ तक कि वैदिक युग में जिस कन्या का विवाह नहीं हुआ हो उसे भी पिता की सम्पत्ति में हिस्सा मिलता था। स्मृतिकारों के मतानुसार यदि पुत्र, पिता के रहते सम्पत्ति का विभाजन चाहे तो पत्नी को भी पुत्र के समान सम्पत्ति का माग मिलता था । यदि पुरुष के एक से ज्यादा पत्नियाँ हों तो प्रत्येक को एक पुत्र के समान सम्पत्ति
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