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________________ Vol. XXVIII, 2005 प्राकृत-साहित्य में जनसामान्य की सशक्त अभिव्यक्ति 107 अत्ता एत्थ णुमज्जइ एत्थ अहं एत्थ परिअणो सअलो । पंथअ राई अंधल मा मे सअणे णुमञ्जहिसि ॥१५॥ सास यहाँ बेखबर सोती हैं, यहाँ मैं और यहाँ शेष परिवार के लोग । अरे रतोंधी से पीड़ित पथिक रात में कहीं मेरे बिस्तर पर मत आ पड़ना । इस गाथा में विद्यमान वैदग्ध्य से भरपूर वस्तु-ध्वनि ने भी काव्यशास्त्र के आचार्यों को सदा आकर्षित किया है। दर्पणकार ने तो इसे रसाभास के कारण उत्तम काव्य ही माना है। हाल ने इन गाथाओं का संग्रह प्रथम शती में किया । समय समय पर इस संग्रह में अभिवृद्धि तथा परिवर्तन भी होते रहे । इस समय जनसामान्य में बौद्ध, जैन तथा ब्राह्मण धर्म प्रचारकों की साख में धीरे धीरे कमी आरही थी। जनसामान्य में प्रचलित गाथा-साहित्य में और कथा साहित्य में इन धर्म प्रचारकों पर व्यंग्य किये जाने लगे थे । इस पृष्ठभूमि में कुछ गाथाओं को देखिये - भंजंतस्स वि तुह सग्ग गामिणो णइ करंज साहाओ । भण कह अज्ज वि धम्मिअ पाआ धरणिं चिअ छिवंति ॥४२॥ करंज वृक्ष की शाखाओं से आच्छादित एक एकान्त स्थान किसी का संकेत स्थान था । एक महात्मा वहाँ नित्य आने लगे और उन्होंने शिवार्चन के निमित्त प्रतिदिन करंज की शाखाओं को तोड़कर उस स्थान को खुला कर दिया । अब वह संकेत स्थान नहीं रह गया । युवती महात्मा से खफा है । हे महात्मा स्वर्ग जाने की चाह में तुम ने नदी-करंज की सारी शाखायें तोड़ डालीं । फिर कहो आज भी तुम्हारे पैर धरती पर क्यों टिके हैं ? उसका व्यंग्य स्पष्ट है - अरे महात्मा करंज-शाखा-भंजन से स्वर्ग नहीं मिलता इससे तो अधोगति ही प्राप्त होती है। संलक्ष्यक्रमभावध्वनि के इस उदाहरण में विशेषोक्ति अलंकार का चमत्कार अनुभव किया जा सकता है । ऐसे ही एक महात्मा की भर्त्सना करती हुई एक युवती कहती है - एद्दहमेत्तगामे ण पडइ भिक्ख त्ति कीस मं भणसि ॥ धम्मिअ करंज-भंजअ जं जीअसि तं पि दे बहुअं ॥५४॥ अरे भिक्षुक 'इस पूरे गाँव में भिक्षा नहीं मिलती' ऐसा मुझ से क्यों कहते हो । अरे करंजभंजक तुम अब तक जीवित हो यही क्या कम है । इसी श्रेणी का एक और प्रसिद्ध उदाहरण देखिये - भम धम्मिअ वीसद्धं सो सुणओ अज्ज मारिओ तेण । गोलाअड विअड-कुडुंग-वासिणा दरिअ सीहेण ॥५८॥ गोदावरी तट का कोई जीर्ण मन्दिर किसी का संकेत स्थान है। एक महात्मा ने वहाँ आकर डेरा जमा लिया। भक्तजन वहाँ आने लगे और संकेत-स्थल का निर्जनत्व समाप्त हो गया। इससे बाधित युवती ने महात्मा को भगाने के लिए अपना कुत्ता वहाँ छोड़ दिया । गोदावरी स्नान करके पूजा-अर्चना के लिए पुष्पावचयन करते महात्मा को कुत्ते ने तंग तो किया परन्तु वह महात्मा को वहाँ से खदेड़ नहीं सका । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520778
Book TitleSambodhi 2005 Vol 28
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, K M Patel
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages188
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size4 MB
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