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________________ प्राकृत-साहित्य में जनसामान्य की सशक्त अभिव्यक्ति जयपाल विद्यालंकार दसवीं शती में काव्यमीमांसा के रचयिता, सर्वभाषाचतुर, रघुकुलचूडामणि राजा महेन्द्रपाल के गुरु, कवि तथा साहित्यशास्त्रमर्मज्ञ राजशेखर ने एक नाटिका कर्पूरमंजरी की रचना की । संस्कृत भाषा में लक्ष्य या लक्षण दोनों ही प्रकार के ग्रन्थों के रचयिता ने इस नाटिका की रचना प्राकत भाषा में की। केवल प्राकृत में रची जाने के कारण तथा विष्कंभक और प्रवेशक न होने के कारण लक्षणानुसार इसे सट्टक की श्रेणी में रखा गया । इस सट्टक की प्रस्तावना में राजशेखर ने इस प्रश्न का उत्तर देना आवश्यक समझा कि संस्कृत भाषा में रचना करने में समर्थ होने पर भी उन्होंने यह रचना प्राकृत में क्यों की । प्रश्न इस बात को स्पष्ट करता है कि उस समय में प्राकृत भाषा में रचना करना उतना सम्मान जनक नहीं माना जाता था जितना संस्कृत में । राजशेखर अपने काल के प्रगतिशील विद्वान् कवि थे। इस प्रश्न के उत्तर में उन्होंने दो बातें कहीं। अत्थणिवेसा ते ज्जेब्ब सदा ते ज्जेब्ब परिणमंतावि । उत्तिबिसेसो कब्बो भासा जा होइ सा होदु ॥ कर्पूर. १-७ - भाषा के कारण परिवर्तन होने पर भी अर्थ तो वही रहता है और शब्द भी वही रहता है । शब्द का स्वरूप मात्र परिवर्तित होता है । उक्ति विशेष काव्य होता है भाषा चाहे जो हो । दूसरी बात उन्होंने और भी सटीक कही - परुसा संक्किअबंधा पाउदबंधो वि होउ सुउमारो । पुरुसमहिलाणं जेत्तिअमिहंतरं तेत्तिअमिमाणं ॥ वही १-८ संस्कृत में रचनायें कठोर अर्थात् नीरस होती हैं, और प्राकृत भाषा में की गई रचना सुकुमार अर्थात् सरस होती हैं । जितना अन्तर पुरुष और स्त्री में होता है उतना ही अन्तर इनमें भी होता है। .. प्राकृत भाषा में रचना के पक्ष में यह दोनों बातें उस राजशेखर ने कहीं जो तत्कालीन कान्यकुब्ज के राजा महेन्द्रपाल और बाद में उनके पुत्र महीपाल की सभा को अलंकृत करते थे। वहाँ वे बहुत सम्माननीय थे । शौरसेनी प्राकृत में निबद्ध कर्पूरमञ्जरी का रचयिता कौन है ? सूत्रधार के इस प्रश्न पर पारिपार्श्विक कहता है - रजनीवल्लभशिखण्ड कौन है ? रघुकुलचूडामणि राजा महेन्द्रपाल का कौन गुरु है ? सूत्रधार इस इंगित को तुरन्त समझ कर कहता है - राजशेखर । कहने का अभिप्राय यह है कि अति सम्माननीय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520778
Book TitleSambodhi 2005 Vol 28
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, K M Patel
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages188
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size4 MB
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