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हुकमचंद जैन
SAMBODHI
इनकी कथाओं में सोद्देश्यता भी विद्यमान है। इस कारण से नेमिचन्द्रसूरि ने अपनी कथाओं के माध्यम से मानवजीवन को सार्थकता प्रदान की है और परंपरा में सुरक्षित कथाओं को जीवित रखा है।
इस प्रकार नेमिचन्द्रसूरि ने प्राकृतकथा और चरितसाहित्य की परंपरा में अपनी रचनाओं के द्वारा एक विशिष्ट स्थान बनाया है। चन्द्रकुल के वृहत्गच्छ के आचार्यों की परंपरा में आचार्य नेमिचन्द्रसूरि चमकते हुए सूर्य की तरह हैं । उनकी रचनाएँ समाज के सभी वर्गों के लिए उपयोगी हैं । अपने इस कृतित्व के माध्यम से नेमिचन्द्रसूरि अपने कवि और कथाकार के व्यक्तित्व की अमिट छाप छोड़ने में सक्षम है।
सन्दर्भसूचि : १. आणंदियं विउसासुं अन्नासु कहासु विज्जामाणासु ।
ऐसा हासठ्ठाणं जायइ जणंमि निस्संसयं जेण ॥ जैन, हुकमचंद, आचार्य नेमिचन्द्रकृत रयणचूणरायचरियं का आलोचनात्मक सम्पादन एवं अध्ययन (लेखक का
अप्रकाशित शोधप्रबन्ध) २. देशाई, जैन साहित्यनो इतिहास, पृ. १९-२१० ३. शास्त्री, देवेन्द्रकुमार, अपभ्रंश भाषा और साहित्य की शोधप्रवृत्तियां, पृ. १८८ ४. (क) गेरोला वाचस्पति, संस्कृत साहित्य का इतिहास, पृ. ९१५
(ख) देशाई, वही, पृ. २२० ५. वही, अनुच्छेद । गा. ११-१२ ६. वही, ग्रन्थप्रशस्ति । गा. १४-१५ ७. वही, प्रशस्ति । गा. ७ ८. जैन, हुकमचंद, आचार्य नेमिचन्द्रकृत रयणचूणरायचरियं का आलोचनात्मक सम्पादन एवं अध्ययन (लेखक का
अप्रकाशित शोधप्रबन्ध) पृ. ५१, गा. ८४ ९. वही, (३०)-१, गा. ५५ १०. वही, (२६)-४, गा. ४६ ११. वही, (५४)-१, गा. ८६-८७ १२. वही, ॥२०॥-७ १३. वही, ॥२४॥-३ १४. वही, ।। ||-अमरदत्त-मित्रानंद की कथा । १५. वही, ॥२४||-३
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