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________________ Vol. XxVII, 2004 आचार्य नेमिचन्द्रसूरि का व्यक्तित्व 83 लघुता प्रदर्शित की है और कहा है कि इस कथा को मैं केवल काव्यरचना के अभ्यास के लिए लिख रहा हूँ। विद्वान् लोग इसके दोष-समुह का शोधन करें । महावीरचरियं की प्रशस्ति में भी ग्रन्थकार ने कहा है कि आगम से रहित लक्षण और छन्दों से दूषित तथा मेरे अज्ञान से इस चरित में जो त्रुटि रह गई है, उसके लिए मैं अपने दोषों की अलोचना करता हूँ। (घ) कवि एवं कथाकार : इस आत्मलाघव के उपरान्त भी कवि की रचनाओं को देखने से यह स्पष्ट है कि वे आगमों के ज्ञाता, साहित्य शास्त्र में पारंगत और सूक्ष्मदर्शी कथाकार थे । उनकी सभी रचनाओं में उनकी अगाध काव्यत्व की झलक स्पष्ट रुप से देखी जा सकती है । नेमिचन्द्रसूरि ने प्राकृत गाथा छन्द का सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है । तथा साहित्य में प्रयुक्त होने वाले प्रायः प्रमुख अलंकारों का प्रयोग इनकी रचनाओं में प्राप्त होता है । ये गद्यशैली के प्रयोग करने में भी सिद्धहस्त थे । रयणचूड में प्रायः सभी प्रकार के गद्य उपलब्ध हैं । इनकी रचनाओं का काव्यात्मक विवेचन आगे प्रस्तुत किया आयेगा जिससे ग्रन्थकार के कवित्व का पता चल सकेगा। आचार्य नेमिचनद्रसूरि ने परंपरा से आगमिक और तात्त्विक ज्ञान भी प्राप्त किया था । इस बात की सूचना उनकी रचनाओं में पद-पद में प्राप्त होती है । जहाँ कहीं भी वे नैतिक आदर्श उपस्थित करने का अवसर देखते हैं, वहाँ उन्होंने अवश्य ही तत्त्व-ज्ञान संबंधी अपने ज्ञान का उपयोग किया है। ग्रन्थकार ने अधिकार तत्त्व-ज्ञान और सुभाषितों का प्रयोग गाथाओं में किया है। कर्म-फल, भाग्य और पुरुषार्थ, साहस और धैर्य, अहिंसा, शील आदि नैतिक आदर्शों के उदाहरण ग्रन्थकार ने दिये हैं । उनसे कवि के विस्तृत ज्ञान और सतत अध्ययन का परिचय मिलता है । कवि ने केवल स्वरचित ही सुभाषितों का प्रयोग अपनी रचनाओं में नहीं किया है, अपितु परंपरा से प्राप्त कई सुभाषितों का यत्र-तत्र सन्दर्भ उन्होंने दिया है। ___ ग्रन्थकार शास्त्रीय ज्ञान के अतिरिक्त लौकिक शिक्षा में भी निष्णात थे । यही कारण है कि ग्रन्थकार ने तत्कालीन समाज, संस्कृति, कला, शिक्षा एवं जनजीवन आदि का सूक्ष्मता से विश्लेषण किया है । माता-पिता के प्रति अनुराग", पति-पत्नि में अगाध प्रेम, मित्रता का अटूट संबंध', राजा का प्रजा के प्रति उत्तरदायित्व, साधु एवं संतों के प्रति श्रद्धा एवं विनय-भाव तथा नैतिक मूल्यों के प्रति निष्ठा इन समस्त मानवमूल्यों के संबंध में नेमिचन्द्रसूरि ने अपने अनुभव और ज्ञान को प्रकट किया है । अतः वे सच्चे अर्थो में लोकविद् थे। आचार्य नेमिचन्द्रसूरि के व्यक्तित्व का एक पक्ष उनका सशक्त कथाकार होना है। इस बात का प्रमाण इसी बात से मिलता है कि उनकी पाँच रचनाओं में से चार रचनाओं में विभिन्न कथाएँ नई शैली में प्रस्तुत की गई हैं । लगभग तीन चार सौ कथाएँ ग्रन्थकार की लेखनी से जन्मी है। इन कथाओं में कथाकार ने विभिन्न कथातत्त्वों, कथानकरूढियों, लोकतत्त्वों का समावेश किया गया है । ग्रन्थकार की यह विशेषता है कि उनकी कथाओं में कौतूहल का तत्त्व निरन्तर बना रहता है, जो कि कथा का प्राण है ।
SR No.520777
Book TitleSambodhi 2004 Vol 27
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages212
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size25 MB
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