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________________ हुकमचंद जैन SAMBODHI ॐ 3 नेमिचन्द्रसूरि की रचनाओं के समय की सीमा ११२९ से ११४१ वि. सं. है। किंतु उनका अध्ययनकाल संभवतः वि. सं. ११२० से ११५० के लगभग रहा होगा । इस अवधि में जैन-कथा और चरितसाहित्य के प्रमुख समकालीन कवि इस प्रकार थे ।' १. श्रीचन्द्र (वि. सं. ११२०) कथाकोसू । २. साधारण सिद्धसेन (वि. सं. ११२३) विलासवईकहा । ३. नमिसाधु (वि. सं. ११२५) काव्यालंकारवृत्ति आदि । चन्द्रप्रभमहतर (वि. सं. ११२७) विजयचन्द्र-चरित । देवसेन (वि. सं. ११३२) सुलोयणचरिउ । ६. जिनचन्द्रसूरि (वि. सं. ११३५) संवेगरंगसाला । ७. वर्धमानाचार्य (वि. सं. ११४०) मनोरमा-चरियं । इन कवियों के समकालीन होने के कारण नेमिचन्द्रसूरी ने अपने ग्रन्थों में कथा और चरित की सभी विशेषताओं को समावेश करने का प्रयत्न किया है, जो उस समय के साहित्य में प्रचलित थी । देवेन्द्रगणि का कार्य क्षेत्र गुजरात था। उस समय वहाँ सोलेकी वंश के राजाओं का राज्य था । इस राजघराने के समय में जैन साहित्य की प्रर्याप्त प्रगति हुई है। देवेन्द्रगणि ने अपने महावीरचरियं की प्रशस्ति में कहा है कि उन्होने श्री कर्णराज्य में अणहिल्लवाडपुर में इस ग्रन्थ की रचना की थी"अणहिलवाड पुरम्मि सिरिकन्नराहिवम्मि विजयन्ते ।" प्रशस्ति गाथा ९ इससे स्पष्ट है कि देवेन्द्रगणि गुजरात के सोलंकी वंश के कर्ण राजा के राज्य में अपनी ग्रन्थ रचना कर रहे थे । ये कर्ण राजा मूलराज के वंशज थे । इसी समय में काश्मीर के कवि बिल्हण ने "कर्णसुन्दरी" नामक एक नाटिका लिखी है, जिसमें नायक कर्ण और नायिका कर्णसुन्दरी है। विद्वानों का मत है कि इस नाटिका में गुजरात के राजा कर्णदेव त्रैलोक्यमल्ल के संबंध में बहुत से ऐतिहासिक वृतान्त भी जाने जा सकते हैं । इन समकालीन कवियों तथा राजा कर्णदेव के संबंध में विस्तृत जानकारी प्राप्त होने पर तथा इन कवियों की रचनाओं के तुलनात्मक अध्ययन होने पर नेमिचन्द्रसूरि के व्यक्तित्व पर और प्रकाश पड सकता है। (ग) आत्मलाघव : - आचार्य नेमिचन्द्रसूरि यद्यपि प्राकृत के महान कवि और आगम के जानकार थे, फिर भी उन्होंने अपने ग्रन्थों में बडी विनम्रता से आत्मलाघव प्रगट किया है। रयणचूडराय-चरियं के प्रारंभ में उन्होंने कहा है कि मेरी इस रचना में न गंभीर अर्थ है, न अलंकार है, फिर भी मैं इस कथा को कहूँगा । क्योंकि यह कथा अज्ञानियों के उद्बोधन के लिए और अपने स्मरण के लिए कही गयी है। यह कथा न पांडित्यप्रदर्शन के लिये है और न विद्वानों के प्रमोद के लिए है। इसी ग्रन्थ के अन्त में भी ग्रन्थकार ने अपनी
SR No.520777
Book TitleSambodhi 2004 Vol 27
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages212
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size25 MB
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