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आचार्य नेमिचन्द्रसूरि का व्यक्तित्व
हुकमचंद जैन
यह सर्व विदित है कि आचार्य नेमिचन्द्रसूरि (अपरनाम देवेन्द्रगणि) सशक्त कथाकारों एवं कवियों में से एक है। इन्होंने अपने ग्रन्थों में कहीं गद्य तो कहीं पद्य तो कहीं गद्य-पद्य मिश्रित शैली का प्रयोग किया है । ये १२वीं शताब्दी के प्रमुख आचार्य हैं । इन्होंने आख्यानकमणिकोश जैसे ग्रन्थें की रचना कर जैन आचार्ये में अपना नाम रोशन किया है। ऐसे आचार्य का परिचय देना जरूरी ही नहीं, नितान्त आवश्यक
(क) प्रारंभिक जीवन :
आचार्य नेमिचन्द्रसूरी के प्रारंभिक जीवन के सम्बन्ध में उनकी स्वयं की रचनाओं अथवा अन्य दूसरे साहित्य में कोई सामग्री उपलब्ध नहीं होती है। उनके स्वयं के ग्रन्थों की प्रशस्तियों आदि के आधार पर उनकी गुरुपरंपरा का तो पता चलता है किंतु लेखक के परिवार, जन्मस्थान, बचपन, गृहस्थजीवन आदि के संबंध में अभी तक कोई सामग्री उपलब्ध नहीं है। तत्कालीन पट्टावलीओं और गच्छों के इतिहास में भी लेखक के मुनिजीवन का ही उल्लेख है ।
ग्रन्थकार की प्रारंभिक रचनाओं में देवेन्द्र साधु नाम मिलता है । संभवत: गृहस्थ जीवन में इनका नाम देवेन्द्र रहा हो, और जब इन्होंने गणि पद प्राप्त किया तब वे देवेन्द्रगणि के नाम से जाने गये। उसी समय से उनका नाम आचार्य नेमिचन्द्रसूरि नाम भी प्रचलित हुआ होगा। (ख) समकालीन कवि एवं राजा :
देवेन्द्रगणि ने अपने ग्रन्थों में किसी समकालीन कवि का नाम से उल्लेख नहीं किया है। किंतु इतना अवश्य कहा है कि आनंद उत्पन्न करने वाली विद्वानों की अन्य कथाओं के विद्यमान होते हुए मेरी यह कथा (रयणचूड) विद्वानों के लिए हास्य का स्थान होगी। उनके इस कथन से यह स्पष्ट है कि वे प्राचीन आचार्यों की कथाओं एवं चरित ग्रन्थों से परिचित थे । और उन्होंने अपने समकालीन कवियों की कथाओं का भी अध्ययन किया होगा । "समराइच्चकहा", "कुवलयमालाकहा", "तिलकमंजरी", "चउप्पनमहापुरिस-चरियं" आदि विशाल रचनाओं के परिपेक्ष्य में देवेन्द्रगणि द्वारा उक्त विचार प्रकट करना एक ओर उनकी विनम्रता का प्रतीक है तो दूसरी ओर वस्तुस्थिति का परिचायक भी ।