________________
Vol. XXVII, 2004
उत्तराध्ययनसूत्र में प्रतिपादित कर्म-मीमांसा
(१) बंध :
संवेग के कारण जीव को धर्मश्रद्धा प्राप्त होती है और वह कर्मबंध नहीं करता । धर्मकथा के द्वारा वह कर्मबंध नहीं करता । धर्मकथा के द्वारा जीव शुभफल देनेवाले कर्मों का बंध करता है ।४३ (२) उदय :
अज्ञानफल देनेवाले कर्म परिपक्व होकर उदय में आते हैं । कर्म वेदना और उदय के समय उनका कोई हिस्सेदार नहीं होता ।४४ (३) अपवर्तना :
अनुप्रेक्षा से जीव सात कर्मप्रकृतियों के प्रगाढ बंधन शिथिल करता है। तीव्र रसानुभाव मंद करके अल्पप्रदेशी करता है । इससे अपवर्तना अवस्था की सूचना मिलती है ।४५ (४) सम्यक्त्वपराक्रम :
अध्ययन के ७२ वें सूत्र में कर्मों की पाँच अवस्थाओं का उल्लेख है : बद्ध, स्पृष्ट, उदीरित, वेदित एवं निजीर्ण । (१०) कर्मों का संवर :
आश्रव का निरोध हो जाना संवर कहलाता है । संवर-गुप्ति, समिति, धर्म, अनुप्रेक्षा, परिषहजय और चारित्र से होता है । तप से संवर और निर्जरा भी होती है। संवर के प्रथम साधन गुप्ति व समिति विषयक स्वतंत्र अध्ययन के द्वारा विवेचन किया गया है। प्रवचनमाता अध्ययन में समिति और गुप्तियों को अष्ट प्रवचनमाता कहा गया है । चरणविधि अध्ययन में दशविध भिक्षुधर्म का उल्लेख मात्र किया है । २१वें प्रश्नोत्तरात्मक अध्ययन में अनुप्रेक्षाओं का विवेचन हैं। अनुप्रेक्षाओं को संवर के साथ-साथ निर्जरा का साधन माना गया है । २२परीषहों का विस्तृत विवेचन परीषह नामक अध्ययन में किया गया है ।
नमिप्रव्रज्या अध्ययन में नमिराजर्षि ने नगरसंरक्षण के रूपक से तत्त्वों को स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि, 'श्रद्धा नगर है, तप संवर की अर्गला है और गुप्ति प्राकार है।६ हरिकेशीय अध्ययन में आत्मज्ञान को श्रेष्ठ यज्ञ कहते हुए कहा है-जो पाँच संवरों से पूर्ण संवृत होते हैं, जो जीवन की आकांक्षा नहीं करते, शरीर की आसक्ति का त्याग करते हैं और वासनाविजयी होते हैं, वे ही श्रेष्ठ यज्ञ करते हैं । इस विवेचन से पाँच संवर ये पाँच इन्द्रियों के निरोध के द्योतक हैं ।४७ गुप्ति, आश्रव और संवर का परस्पर संबंध स्पष्ट करते हुए कहा है कि, कायगुप्ति से जीव संवर को प्राप्त होता है । और संवर का स्पष्ट उल्लेख करते हुए कहा है-कर्मों के अनुभाग को जानकर बुद्धिमान साधक को कर्मों के संवर और क्षय का प्रयत्न करना चाहिए ४८ (११) कर्मक्षय अथवा निर्जरा :
कर्माश्रव निरोध के बाद क्रमशः कर्मक्षय की प्रक्रिया आरंभ होती है। उत्तराध्ययन में निर्जरा